सर चंद्रशेखर वेंकटरमन | |
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जन्म | 7 नवम्बर 1888 तिरुचिरापल्ली, तमिल नाडु |
मृत्यू | 21 नवम्बर 1970 (उम्र 82) बंगलुरु, कर्नाटक, भारत |
राष्ट्रीयता | ![]() |
क्षेत्र | भौतिकी |
संस्थाएँ | भारतीय वित्त विभाग इंडियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस भारतीय विज्ञान संस्थान |
मातृसंस्था | प्रेसीडेंसी कालिज |
डॉक्टरेट छात्र | जी एन रामचंद्रन |
प्रसिद्ध कार्य | रमण इफेक्ट |
पुरस्कार | नाइट बैचेलर (१९२९) भौतिकी में नोबल पुरस्कार (१९३०) भारत रत्न लेनिन शांति पुरस्कार |
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Wednesday, 30 November 2016
चन्द्रशेखर वेंकटरमन
Sunday, 27 November 2016
विक्रमादित्य की गौरव गाथा-ऐतिहासिक उपन्यास-आचार्य श्री देवेन्द्र मुनी

भारत में विक्रमादित्य अत्यन्त प्रसिध्द , न्याय प्रिय , दानी , परोपकारी और सर्वांग सदाचारी राजा हुए हैं | स्कन्ध पुराण और भविष्य पुराण ,कथा सप्तशती , वृहत्कथा और द्वात्रिश्न्त्युत्तालिका,सिंहासन बत्तीसी , कथा सरितसागर , पुरुष परीक्षा , शनिवार व्रत की कथा आदि ग्रन्थों में इनका चरित्र आया है | बूंदी के सुप्रशिध्द इतिहासकार सूर्यमल्ल मिश्रण कृत वंश भास्कर में परमार वंशीय राजपूतों का सजीव वर्णन मिलता है इसी में वे लिखते हैं “परमार वंश में राजा गंधर्वसेन से भर्तहरी और विक्रमादित्य नामक तेजस्वी पुत्र हुए, जिसमें विक्रमादित्य नें धर्मराज युधिष्ठर के कंधे से संवत का जुड़ा उतार कर अपने कंधे पर रखा | कलिकाल को अंकित कर समय का सुव्यवस्थित गणितीय विभाजन का सहारा लेकर विक्रम संवत चलाया |” | वीर सावरकर ने इस संदर्भ में लिखा है कि एक इरानी जनश्रुति है कि ईरान के राजा मित्रडोट्स जो तानाशाह हो अत्याचारी हो गया था का वध विक्रम दित्य ने किया था और उस महान विजय के कारण विक्रम संवत प्रारम्भ हुआ |संवत कौन प्रारंभ कर सकता है।
यूं तो अनेकानेक संवतों का जिक्र आता है और हर संवत भारत में चैत्र प्रतिपदा से ही प्रारम्भ होता है | मगर अपने नाम से संवत हर कोई नहीं चला सकता , स्वंय के नाम से संवत चलने के लिए यह जरुरी है कि उस राजा के राज्य में कोई भी व्यक्ति / प्रजा कर्जदार नहीं हो ! इसके लिए राजा अपना कर्ज तो माफ़ करता ही था तथा जनता को कर्ज देने वाले साहूकारों का कर्ज भी राज कोष से चुका कर जनता को वास्तविक कर्ज मुक्ति देता था | अर्थात संवत नामकरण को भी लोक कल्याण से जोड़ा गया था ताकि आम जनता का परोपकार करने वाला ही अपना संवत चला सके | सुप्रशिध्द इतिहासकार सूर्यमल्ल मिश्रण कि अभिव्यक्ति से तो यही लगता है कि सम्राट धर्मराज युधिष्ठर के पश्चात विक्रमादित्य ही वे राजा हुए जिन्होनें जनता का कर्ज (जुड़ा ) अपने कंधे पर लिया | इसी कर्ण उनके द्वारा प्रवर्तित संवत सर्वस्वीकार्य हुआ |
४००० वर्ष पुरानी उज्जयिनी …
अवंतिका के नाम से सुप्रसिध्द यह नगर श्री कृष्ण के बाल्यकाल का शिक्षण स्थल रहा है , संदीपन आश्रम यहीं है जिसमें श्री कृष्ण, बलराम और सुदामा का शिक्षण हुआ था | अर्थात आज से कमसे कम पांच हजार वर्षों से अधिक पुरानी यह नगरी है | दूसरी प्रमुख बात यह है कि अग्निवंश के परमार राजाओ कि एक शाखा चन्द्र प्र्ध्दोत नामक सम्राट ईस्वी सन के ६०० वर्ष पूर्व सत्तारूढ़ हुआ अर्थात लगभग २६०० वर्ष पूर्व और उसके वंशजों नें तीसरी शताव्दी तक राज्य किया | इसका अर्थ यह हुआ कि ९०० वर्षो तक परमार राजाओं का मालवा पर शासन रहा | तीसरी बात यह है कि कार्बन डेटिंग पध्दति से उज्जेन नगर कि आयु ईस्वी सन से २००० वर्ष पुरानी सिध्द हुई है , इसका अर्थ हुआ कि उज्जेन नगर का अस्तित्व कम से कम ४००० वर्ष पूर्व का है | इन सभी बातों से सवित होता है कि विक्रमादित्य पर संदेह गलत है |
अवंतिका के नाम से सुप्रसिध्द यह नगर श्री कृष्ण के बाल्यकाल का शिक्षण स्थल रहा है , संदीपन आश्रम यहीं है जिसमें श्री कृष्ण, बलराम और सुदामा का शिक्षण हुआ था | अर्थात आज से कमसे कम पांच हजार वर्षों से अधिक पुरानी यह नगरी है | दूसरी प्रमुख बात यह है कि अग्निवंश के परमार राजाओ कि एक शाखा चन्द्र प्र्ध्दोत नामक सम्राट ईस्वी सन के ६०० वर्ष पूर्व सत्तारूढ़ हुआ अर्थात लगभग २६०० वर्ष पूर्व और उसके वंशजों नें तीसरी शताव्दी तक राज्य किया | इसका अर्थ यह हुआ कि ९०० वर्षो तक परमार राजाओं का मालवा पर शासन रहा | तीसरी बात यह है कि कार्बन डेटिंग पध्दति से उज्जेन नगर कि आयु ईस्वी सन से २००० वर्ष पुरानी सिध्द हुई है , इसका अर्थ हुआ कि उज्जेन नगर का अस्तित्व कम से कम ४००० वर्ष पूर्व का है | इन सभी बातों से सवित होता है कि विक्रमादित्य पर संदेह गलत है |
नवरत्न …
सम्राट विक्रमादित्य कि राज सभा में नवरत्न थे .., ये नो व्यक्ति तत्कालीन विषय विशेषज्ञ थे | संस्कृत काव्य और नाटकों के लिए विश्व प्रशिध्द कालिदास , शब्दकोष (डिक्सनरी) के निर्माता अमर सिंह , ज्योतिष में सूर्य सिध्दांत के प्रणेता तथा उस युग के प्रमुख ज्योतिषी वराह मिहिर थे, जिन्होंने विक्रमादित्य की बेटे की मौत की भविष्यवाणी की थी | आयुर्वेद के महान वैध धन्वन्तरी , घटकर्पर , महान कूटनीतिज्ञ बररुची जैन , बेताल भट्ट , संकु और क्षपनक आदि द्विव्य विभूतियाँ थीं | बाद में अनेक राजाओं ने इसका अनुशरण कर विक्रमादित्य पदवी धारण की एवं नवरतनों को राजसभा में स्थान दिया | इसी वंश के राजा भोज से लेकर अकबर तक की राजसभा में नवरतनों का जिक्र है |
वेतालभट्ट एक धर्माचार्य थे. माना जाता है कि उन्होंने विक्रमादित्य को सोलह छंदों की रचना “नीति -प्रदीप” (Niti-pradīpa सचमुच “आचरण का दीया”) का श्रेय दिया है.
सम्राट विक्रमादित्य कि राज सभा में नवरत्न थे .., ये नो व्यक्ति तत्कालीन विषय विशेषज्ञ थे | संस्कृत काव्य और नाटकों के लिए विश्व प्रशिध्द कालिदास , शब्दकोष (डिक्सनरी) के निर्माता अमर सिंह , ज्योतिष में सूर्य सिध्दांत के प्रणेता तथा उस युग के प्रमुख ज्योतिषी वराह मिहिर थे, जिन्होंने विक्रमादित्य की बेटे की मौत की भविष्यवाणी की थी | आयुर्वेद के महान वैध धन्वन्तरी , घटकर्पर , महान कूटनीतिज्ञ बररुची जैन , बेताल भट्ट , संकु और क्षपनक आदि द्विव्य विभूतियाँ थीं | बाद में अनेक राजाओं ने इसका अनुशरण कर विक्रमादित्य पदवी धारण की एवं नवरतनों को राजसभा में स्थान दिया | इसी वंश के राजा भोज से लेकर अकबर तक की राजसभा में नवरतनों का जिक्र है |
वेतालभट्ट एक धर्माचार्य थे. माना जाता है कि उन्होंने विक्रमादित्य को सोलह छंदों की रचना “नीति -प्रदीप” (Niti-pradīpa सचमुच “आचरण का दीया”) का श्रेय दिया है.
विक्रमार्कस्य आस्थाने नवरत्नानि
धन्वन्तरिः क्षपणको मरसिंह शंकू वेताळभट्ट घट कर्पर कालिदासाः।
धन्वन्तरिः क्षपणको मरसिंह शंकू वेताळभट्ट घट कर्पर कालिदासाः।
ख्यातो वराह मिहिरो नृपते स्सभायां रत्नानि वै वररुचि र्नव विक्रमस्य।।
DOWNLOAD-विक्रमादित्य की गौरव गाथा-ऐतिहासिक उपन्यासHow to Write An Essay
If you’re at high school, college or university, you’ll almost certainly need to write essays. More and more students are being asked to produce written assignments, even in physics and mathematics.
Writing an essay means more than finding and recording facts. It means thinking critically: analysing material and reaching a conclusion. It means showing that you understand the material you’ve been studying. Above all, it means presenting a coherent argument.
Learning to write essays also prepares us for life beyond college. In the real world, more and more of us need to be able to express ideas clearly, with good grammar and a flexible style. Essay writing gives us the skills to become more effective citizens.
And yet, all too often, students are not offered the skills and techniques to write effective essays.
How do you start? What kind of words should you use? Are you entitled to offer your own views on a subject?
How to Write an Essay will make life easier for you. It will help you produce an essay that your tutor will appreciate, and that will do you credit.
DOWNLOAD- How to Write An Essay
Saturday, 26 November 2016
पतिता -चतुरसेन शाशत्री

आचार्य चतुरसेन शास्त्री का जन्म 26 अगस्त, 1891 को चांदोख ज़िला बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में इनकी प्रतिष्ठा है। चतुरसेन शास्त्री की यह विशेषता है कि उन्होंने उपन्यासों के अलावा और भी बहुत कुछ लिखा है, कहानियाँ लिखी हैं, जिनकी संख्या प्राय: साढ़े चार सौ है। गद्य-काव्य, धर्म, राजनीति, इतिहास, समाजशास्त्र के साथ-साथ स्वास्थ्य एवं चिकित्सा पर भी उन्होंने अधिकारपूर्वक लिखा है।
इनके प्रमुख उपन्यासों के नाम हैं-
- वैशाली की नगरवधू
- वयं रक्षाम
- सोमनाथ
- मन्दिर की नर्तकी
- रक्त की प्यास
- सोना और ख़ून (चार भागों में 1...2...3....4.)
- आलमगीर
- सह्यद्रि की चट्टानें
- अमर सिंह
- ह्रदय की परख
Friday, 18 November 2016
तात्या टोपे
तात्या टोपे (1814 - 18 अप्रैल 1859)) भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के एक प्रमुख सेनानायक थे। सन १८५७ के महान विद्रोह में उनकी भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण, प्रेरणादायक और बेजोड़ थी।
सन् सत्तावन के विद्रोह की शुरुआत १० मई को मेरठ से हुई थी। जल्दी ही क्रांति की चिन्गारी समूचे उत्तर भारत में फैल गयी। विदेशी सत्ता का खूनी पंजा मोडने के लिए भारतीय जनता ने जबरदस्त संघर्ष किया। उसने अपने खून से त्याग और बलिदान की अमर गाथा लिखी। उस रक्तरंजित और गौरवशाली इतिहास के मंच से झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहब पेशवा, राव साहब, बहादुरशाह जफर आदि के विदा हो जाने के बाद करीब एक साल बाद तक तात्या विद्रोहियों की कमान संभाले रहे।
तात्या का जन्म महाराष्ट्र में नासिक के निकट पटौदा जिले के येवला नामक गाँव में एक देशस्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता पाण्डुरंग राव भट्ट़(मावलेकर), पेशवा बाजीराव द्वितीय के घरू कर्मचारियों में से थे। बाजीराव के प्रति स्वामिभक्त होने के कारण वे बाजीराव के साथ सन् १८१८ में बिठूरचले गये थे। तात्या का वास्तविक नाम रामचंद्र पाण्डुरंग राव था, परंतु लोग स्नेह से उन्हें तात्या के नाम से पुकारते थे। तात्या का जन्म सन् १८१४ माना जाता है। अपने आठ भाई-बहनों में तात्या सबसे बडे थे।
कुछ समय तक तात्या ने ईस्ट इंडिया कम्पनी में बंगाल आर्मी की तोपखाना रेजीमेंट में भी काम किया था, परन्तु स्वतंत्र चेता और स्वाभिमानी तात्या के लिए अंग्रेजों की नौकरी असह्य थी। इसलिए बहुत जल्दी उन्होंने उस नौकरी से छुटकारा पा लिया और बाजीराव की नौकरी में वापस आ गये। कहते हैं तोपखाने में नौकरी के कारण ही उनके नाम के साथ टोपे जुड गया, परंतु कुछ लोग इस संबंध में एक अलग किस्सा बतलाते हैं। कहा जाता है कि बाजीराव ने तात्या को एक बेशकीमती और नायाब टोपी दी थी। तात्या इस टोपे को बडे चाव से पहनते थे। अतः बडे ठाट-बाट से वह टोपी पहनने के कारण लोग उन्हें तात्या टोपी या तात्या टोपे के नाम से पुकारने लगे।वह आजन्म अविवाहित रहे।
Wednesday, 16 November 2016
भगवत पुराण
भागवत पुराण हिन्दुओं के अट्ठारह पुराणों में से एक है। इसे श्रीमद्भागवतम् या केवल भागवतम् भी कहते हैं। इसका मुख्य वर्ण्य विषय भक्ति योग है, जिसमे कृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। इसके अतिरिक्त इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरुपण भी किया गया है। परंपरागत तौर पर इस पुराण का रचयिता वेद व्यास को माना जाता है।
श्रीमद्भागवत भारतीय वाङ्मय का मुकुटमणि है। भगवान शुकदेव द्वारा महाराज परीक्षित को सुनाया गया भक्तिमार्ग तो मानो सोपान ही है। इसके प्रत्येक श्लोक में श्रीकृष्ण-प्रेमकी सुगन्धि है। इसमें साधन-ज्ञान, सिद्धज्ञान, साधन-भक्ति, सिद्धा-भक्ति, मर्यादा-मार्ग, अनुग्रह-मार्ग, द्वैत, अद्वैत समन्वय के साथ प्रेरणादायी विविध उपाख्यानों का अद्भुत संग्रह है।[1]
अष्टादश पुराणों में भागवत नितांत महत्वपूर्ण तथा प्रख्यात पुराण है। पुराणों की गणना में भागवत अष्टम पुराण के रूप में परिगृहीत किया जाता है (भागवत 12.7.23)। भागवत पुराण में महर्षि सूत गोस्वामी उनके समक्ष प्रस्तुत साधुओं को एक कथा सुनाते हैं। साधु लोग उनसे विष्णु के विभिन्न अवतारों के बारे में प्रश्न पूछते हैं। सुत गोस्वामी कहते हैं कि यह कथा उन्होने एक दूसरे ऋषि शुकदेव से सुनी थी। इसमें कुल बारह सकन्ध हैं। प्रथम काण्ड में सभी अवतारों को सारांश रूप में वर्णन किया गया है।
आजकल 'भागवत' आख्या धारण करनेवाले दो पुराण उपलब्ध होते हैं :
- (क) देवीभागवत तथा
- (ख) श्रीमद्भागवत
श्रीमद्भागवत भक्तिरस तथा अध्यात्मज्ञान का समन्वय उपस्थित करता है। भागवत निगमकल्पतरु का स्वयंफल माना जाता है जिसे नैष्ठिक ब्रह्मचारी तथा ब्रह्मज्ञानी महर्षि शुक ने अपनी मधुर वाणी से संयुक्त कर अमृतमय बना डाला है। स्वयं भागवत में कहा गया है-
- सर्ववेदान्तसारं हि श्रीभागवतमिष्यते ।
- तद्रसामृततृप्तस्य नान्यत्र स्याद्रतिः क्वचित् ॥
- श्रीमद्भाग्वतम् सर्व वेदान्त का सार है। उस रसामृत के पान से जो तृप्त हो गया है, उसे किसी अन्य जगह पर कोई रति नहीं हो सकती। (अर्थात उसे किसी अन्य वस्तु में आनन्द नहीं आ सकता।)
- भागवत के देशकाल का यथार्थ निर्णय अभी तक नहीं हो पाया है। एकादश स्कंध में (5.38-40) कावेरी, ताम्रपर्णी, कृतमाला आदि द्रविड़देशीय नदियों के जल पीनेवाले व्यक्तियों को भगवान् वासुदेव का अमलाशय भक्त बतलाया गया है। इसे विद्वान् लोग तमिल देश के आलवारों (वैष्णवभक्तों) का स्पष्ट संकेत मानते हैं। भागवत में दक्षिण देश के वैष्णव तीर्थों, नदियों तथा पर्वतों के विशिष्ट संकेत होने से कतिपय विद्वान् तमिलदेश को इसके उदय का स्थान मानते हैं।काल के विषय में भी पर्याप्त मतभेद है। इतना निश्चित है कि बोपदेव (13वीं शताब्दी का उत्तरार्ध, जिन्होंने भागवत से संबद्ध 'हरिलीलामृत', 'मुक्ताफल' तथा 'परमहंसप्रिया' का प्रणयन किया तथा जिनके आश्रयदाता, देवगिरि के यादव राजा थी), महादेव (सन् 1260-71) तथा राजा रामचंद्र (सन् 1271-1309) के करणाधिपति तथा मंत्री, प्रख्यात धर्मशास्त्री हेमाद्रि ने अपने 'चतुर्वर्ग चिंतामणि' में भागवत के अनेक वचन उधृत किए हैं, भागवत के रचयिता नहीं माने जा सकते। शंकराचार्य के दादा गुरु गौडपादाचार्य ने अपने 'पंचीकरणव्याख्या' में 'जगृहे पौरुषं रूपम्' (भा. 1.3.1) तथा 'उत्तरगीता टीका' में 'श्रेय: स्रुतिं भक्ति मुदस्य ते विभो' (भा. 10.14.4) भागवत के दो श्लोकों को उद्धृत किया है। इससे भागवत की रचना सप्तम शती से अर्वाचीन नहीं मानी जा सकती।
DOWNLOA-भगवत पुराण
Sunday, 13 November 2016
विज्ञान भैरव तंत्र- सम्पूर्ण तंत्र सूत्र -ओशो

विज्ञान भैरव तंत्र का जगत बौद्धिक नहीं है। वह दार्शनिक भी नहीं है। तंत्र शब्द का अर्थ है। विधि, उपाय, मार्ग। इस लिए यह एक वैज्ञानिक ग्रंथ है। विज्ञान ‘’क्यों‘’ की नहीं, ‘’कैसे’’ की फिक्र करता है। दर्शन और विज्ञान में यही बुनियादी भेद है। दर्शन पूछता है। यह अस्तित्व क्यों है? विज्ञान पूछता है, यह आस्तित्व कैसे है? जब तुम कैसे का प्रश्न पूछते हो, तब उपाय, विधि, महत्वपूर्ण हो जाती है। तब सिद्धांत व्यर्थ हो जाती है। अनुभव केंद्र बन जाता है।
विज्ञान का मतलब है चेतना है। और भैरव का विशेष शब्द है, तांत्रिक शब्द, जो पारगामी के लिए कहा जाता है। इसीलिए शिव को भैरव कहते है, और देवी को भैरवी—वे जो समस्त द्वैत के पार चले जाते है।
पार्वती कहती है—
आपका सत्य रूप क्या है?
यह आपका आश्चर्य-भरा जगता क्या है?
इसका बीज क्या है?
विश्व चक्र की धूरी क्या है?
यह चक्र चलता ही जाता है—महा परिवर्तन, सतत प्रवाह।
इसका मध्य बिंदु क्या है?
इसकी धूरी कहां है?
अचल केंद्र कहां है?
रूपों पर छाए लेकिन रूप के परे यह जीवन क्या है?
देश और काल, नाम और प्रत्यय के परे जाकर हम इसमे कैसे पूर्णत: प्रवेश करे?
मेरे संशय निर्मूल करे……
लेकिन संशय निर्मूल कैसे होंगे? किसके ऊपर से? क्या कोई उत्तर है जो कि मन के संशय दूर कर दे? मन ही तो संशय है। जब तक मन नहीं मिटता है, संशय निर्मूल कैसे होंगे?
शिव उत्तर देंगे। उनके उत्तर में सिर्फ विधियां है—सबसे पुरानी, सबसे प्रचीन विधियां। लेकिन तुम उन्हें अत्याधुनिक भी कह सकते हो। क्योंकि उनमें जोड़ा नहीं जा सकता। वे पूर्ण है, एक सौ बारह विधियां। उनमें सभी संभावनाओं का समावेश है; मन को शुद्ध करने के, मन के अतिक्रमण के सभी उपाय उनमें समाएँ है। शिव की एक सौ बारह विधियों में एक और विधि नहीं जोड़ी जा सकती। कुछ जोड़ने की गुंजाईश ही नहीं है। यह सर्वांगीण है, संपूर्ण है, अंतिम है। यह सब से प्राचीन है और साथ ही सबसे आधुनिक, सबसे नवीन। पुराने पर्वतों की भांति ये तंत्र पुराने है, शाश्वत जैसे लगते है। और साथ ही सुबह के सूरज के सामने खड़े ओस-कण की भांति ये नए है। ये इतने ताजे है।
ध्यान की इन एक सौ बारह विधियों से मन के रूपांतरण का पूरा विज्ञान निर्मित हुआ है। एक-एक कर हम उनमें प्रवेश करेंगे। पहले हम उन्हें बुद्धि से समझने की चेष्टा करेंगे। लेकिन बुद्धि को मात्र एक यंत्र की तरह काम में लाओ, मालिक की तरह नहीं। समझने के लिए यंत्र की तरह उसका उपयोग करों। लेकिन उसके जरिए नए व्यवधान मत पैदा करो। जिस समय हम इन विधियों की चर्चा करेंगे। तुम अपने पुराने ज्ञान को पुरानी जानकारियों को एक किनारे धर देना। उन्हें अलग ही कर देना। वे रास्ते की धूल भर है।
इन विधियों का साक्षात्कार निश्चित ही सावचेत मन से करो; लेकिन तर्क को हटा कर करो। इस भ्रम में मत रहो कि विवाद करने वाला मन सावचेत मन है। वह नहीं है। क्योंकि जिस क्षण तुम विवाद में उतरते हो, उसी क्षण सजगता खो जाती है। सावचेत नहीं रहते हो। तुम तब यहां हो ही नहीं।
ये विधियां किसी धर्म की नहीं है। वे ठीक वैसे ही हिंदू नहीं है जैसे सापेक्षवाद का सिद्धांत आइंस्टीन के द्वारा प्रतिपादित होने के कारण यहूदी नहीं हो जाता है। रेडियों टेलीविजन ईसाई नहीं है। ये विधियां हिंदुओं की ईजाद अवश्य है, लेकिन वे स्वयं हिंदू नहीं है। इस लिए इन विधियों में किसी धार्मिक अनुष्ठान का उल्लेख नहीं रहेगा। किसी मंदिर की जरूरत नहीं है। तुम स्वयं मंदिर हो। तुम ही प्रयोगशाला हो, तुम्हारे भीतर ही पूरा प्रयोग होने वाला है। और विश्वास की भी जरूरत नहीं है।
तंत्र धर्म नहीं है। विज्ञान है। किसी विश्वास की जरूरत नहीं है। कुरान या वेद में, बुद्ध या महावीर में आस्था रखने की आवश्यकता नहीं है। नहीं, किसी विश्वास की आवश्यकता है। प्रयोग करने का महा साहस पर्याप्त है, प्रयोग करने की हिम्मत काफी है। एक मुसलमान प्रयोग कर सकता है। वह कुरान के गहरे अर्थों को उपलब्ध हो जाएगा। एक हिंदू अभ्यास कर सकता है। और वह पहली दफा जानेगा कि वेद क्या है? वैसे ही एक जैन इस साधना में उतर सकता है, बौद्ध इस साधना में उतर सकता है, एक ईसाई इस साधना में उतर सकता है…वे जहां है तंत्र उन्हें आप्तकाम करेगा। उनके अपने चुने हुए रास्ते जो भी हो, तंत्र सहयोगी होगा।
यहीं कारण है कि जनसाधारण के लिए तंत्र नहीं समझा गया। और सदा यह होता है कि जब तुम किसी चीज को नहीं समझते हो तो उसे गलत जरूर समझते हो। क्योंकि तब तुम्हें लगता है। कि समझते जरूर हो। तुम रिक्त स्थान में बने रहने को राज़ी नहीं हो।
दूसरी बात कि जब तुम किसी चीज को नहीं समझते हो, तुम उसे गाली देने लगते हो। यह इसलिए कि यह तुम्हें अपमानजनक लगता है। तुम सोचते हो, मैं और नहीं समझूं, यह असंभव है। इस चीज के साथ ही कुछ भूल होगी। और तब तुम गाली देने लगते हो। तब तुम ऊलजलूल बकने लगते हो। और कहते हो कि अब ठीक है।
इस लिए तंत्र को नहीं समझा गया। और तंत्र को गलत समझा गया। महान राज भौज ने पवित्र उज्जैन नगरी में तंत्र के विद्यि पीठ को खत्म कर दिया। एक लाख तांत्रिक जोड़ों को काट दिया। क्यों ये क्या है, हमारी समझ में नहीं आता। कुछ सालों पहले वहीं पर राजा विक्रमादित्य ने उन्हीं तांत्रिकों कितना सम्मान दिया…..यह इतना गहरा और उँचा था कि यह होना स्वाभाविक था।
इस लिए तंत्र को नहीं समझा गया। और तंत्र को गलत समझा गया। महान राज भौज ने पवित्र उज्जैन नगरी में तंत्र के विद्यि पीठ को खत्म कर दिया। एक लाख तांत्रिक जोड़ों को काट दिया। क्यों ये क्या है, हमारी समझ में नहीं आता। कुछ सालों पहले वहीं पर राजा विक्रमादित्य ने उन्हीं तांत्रिकों कितना सम्मान दिया…..यह इतना गहरा और उँचा था कि यह होना स्वाभाविक था।
तीसरी बात कि चूंकि तंत्र द्वैत के पार जाता है, इसलिए उसका दृष्टिकोण अति नैतिक है। कृपया कर इन शब्दों को समझो: नैतिक, अनैतिक, अति नैतिक। नैतिक क्या है हम समझते है; अनैतिक क्या है हम समझते है; लेकिन जब कोई चीज अति नैतिक हो जाती है, दौनों के पार चली जाती है। तब उसे समझना कठिन है।
तंत्र अति नैतिक है। तंत्र कहता है। कोई नैतिकता जरूरी नहीं है। कोई खास नैतिकता जरूरी नहीं है। सच तो यह है कि तुम अनैतिक हो, क्योंकि तुम्हारा चित अशांत है। इसलिए तंत्र शर्त नहीं लगता कि पहले तुम नैतिक बनो तब तंत्र की साधना कर सकते हो। तंत्र के लिए यह बात ही बेतुकी है। कोई बीमार है, बुखार में है, डाक्टर आकर कहता है: पहले अपना बुखार कम करो, पहले पूरा स्वस्थ हो लो और तब मैं दवा दूँगा।
यही तो हो रहा है, चौर साधु के पास जाता है। और कहता है, मैं चौर हूं, मुझे ध्यान करना सिखाएं। साधु कहता है, पहले चौरी छोड़ो, चौर रहते ध्यान कैसे कर सकते हो। एक शराबी आकर कहता है, मैं शराब पीता हूं, मुझे ध्यान बताएं। और साधु कहता है, पहली शर्त कि शराब छोड़ो तब ध्यान कर सकोगे।
तंत्र तुम्हारी तथा कथित नैतिकता की, तुम्हारे समाजिक रस्म-रिवाज आदि की चिंता नहीं करता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि तंत्र तुम्हें अनैतिक होने को कहता है। नहीं, तंत्र जब तुम्हारी नैतिकता की ही इतनी परवाह नहीं करता। तो वह तुम्हें अनैतिक होने को नहीं कह सकता। तंत्र तो वैज्ञानिक विधि बताता है कि कैसे चित को बदला जाए। और एक बार चित दूसर हुआ कि तुम्हारा चरित्र दूसरा हो जाएगा। एक बार तुम्हारे ढांचे का आधार बदला कि पूरी इमारत दूसरी हो जाएगी।
इसी अति नैतिक सुझाव के कारण तंत्र तुम्हारे तथाकथित साधु-महात्माओं को बर्दाश्त नहीं हुआ। वे सब उसके विरोध में खड़े हो गए। क्योंकि अगर तंत्र सफल होता है तो धर्म के नाम पर चलने वाली सारी नासमझी समाप्त हो जाएगी।
इसी अति नैतिक सुझाव के कारण तंत्र तुम्हारे तथाकथित साधु-महात्माओं को बर्दाश्त नहीं हुआ। वे सब उसके विरोध में खड़े हो गए। क्योंकि अगर तंत्र सफल होता है तो धर्म के नाम पर चलने वाली सारी नासमझी समाप्त हो जाएगी।
तंत्र कहता है कि उस अवस्था का नाम भैरव है जब मन नहीं रहता—अ-मन की अवस्था है। और तब पहल दफा तुम यथार्थत: उसको देखते हो जो है। जब तक मन है, तुम अपना ही संसार रचे जाते हो, तुम उसे आरोपित, प्रक्षेपित किए जाते हो, इसलिए पहल तो मन को बदलों और तब मन को अ-मन में बदलों।
और ये एक सौ बारह विधियों सभी लोगों के काम आ सकती है। हो सकता है, कोई विशेष उपाय तुमको ठीक न पड़े, इसलिए तो शिव अनेक उपाय बताए चले जाते है। कोई एक विधि चुन लो जो तुमको जंच जाए।
और यह जानना कठिन नहीं है। कि कौन सी विधि तुम्हें जँचती है। हम यहां प्रत्येक विधि को समझने की कोशिश करेंगे। तुम अपने लिए वह विधि चुन लो जो कि तुम्हें और तुम्हारे मन को रूपांतरित कर दे। यह समझ, यह बौद्धिक समझ बुनियादी तौर से जरूरी है। लेकिन अंत नहीं है। जिस विधि की भी चर्चा में यहां करूं उसको प्रयोग करो। सच में यह है कि जब तुम अपनी सही विधि का प्रयोग करते हो तब झट से उसका तार तुम्हारे किसी तार से लगाकर बज उठता है।
एक विधि लो उसके साथ तीन दिन खेलो। अगर तुम्हें उसके साथ निकटता की अनुभूति हो, अगर उसके साथ तुम थोड़ा स्वस्थ महसूस करो, अगर तुम्हें लगे कि यह तुम्हारे लिए है तो फिर उसके प्रति गंभीर हो जाओ। तब दूसरी विधियों को भूल जाओ, उनमें खेलना बंद करो। और अपनी विधि के साथ टीको, कम से कम तीन महीने टीको। चमत्कार संभव है, बस इतना होना चाहिए कि वह विधि सचमुच तुम्हारे लिए हो। यदि तुम्हारे लिए नहीं है तो कुछ नहीं होगा। तब उसके साथ जन्मों-जन्मों तक प्रयोग करके भी कुछ नहीं होगा।
और यह जानना कठिन नहीं है। कि कौन सी विधि तुम्हें जँचती है। हम यहां प्रत्येक विधि को समझने की कोशिश करेंगे। तुम अपने लिए वह विधि चुन लो जो कि तुम्हें और तुम्हारे मन को रूपांतरित कर दे। यह समझ, यह बौद्धिक समझ बुनियादी तौर से जरूरी है। लेकिन अंत नहीं है। जिस विधि की भी चर्चा में यहां करूं उसको प्रयोग करो। सच में यह है कि जब तुम अपनी सही विधि का प्रयोग करते हो तब झट से उसका तार तुम्हारे किसी तार से लगाकर बज उठता है।
एक विधि लो उसके साथ तीन दिन खेलो। अगर तुम्हें उसके साथ निकटता की अनुभूति हो, अगर उसके साथ तुम थोड़ा स्वस्थ महसूस करो, अगर तुम्हें लगे कि यह तुम्हारे लिए है तो फिर उसके प्रति गंभीर हो जाओ। तब दूसरी विधियों को भूल जाओ, उनमें खेलना बंद करो। और अपनी विधि के साथ टीको, कम से कम तीन महीने टीको। चमत्कार संभव है, बस इतना होना चाहिए कि वह विधि सचमुच तुम्हारे लिए हो। यदि तुम्हारे लिए नहीं है तो कुछ नहीं होगा। तब उसके साथ जन्मों-जन्मों तक प्रयोग करके भी कुछ नहीं होगा।
लेकिन ये एक सौ बारह विधियां तो समस्त मानव-जाति के लिए है। और वे उन सभी युगों के लिए है जो गुजर गए है और आने वाले है। और किसी भी युग में एक भी एका आदमी नहीं हुआ और न होने वाला ही है। जो कह सके कि ये सभी एक सौ बारह विधियां मेरे लिए व्यर्थ है। असंभव , यह असंभव है।
प्रत्येक ढंग के चित के लिए यहां गुंजाइश है। तंत्र में प्रत्येक किस्म के चित के लिए विधि है। कई विधियां है जिनके उपयुक्त आदमी अभी उपलब्ध नहीं है, वे भविष्य के लिए है। और ऐसी विधियां भी है जिनके उपयुक्त मनुष्य रहे ही नहीं। वे अतीत के लिए है। लेकिन डर मत जाना। अनेक विधियां है जो तुम्हारे लिए ही है।
ओशो
DOWNLOAD- विज्ञान भैरव तंत्र- सम्पूर्ण तंत्र सूत्र Saturday, 12 November 2016
हमें डायनासोर के बारे में कैसे पता चला ?
डायनासोर (लातिन : Dinosauria) जिसका अर्थ यूनानी भाषा में बड़ी छिपकली होता है लगभग 16 करोड़ वर्ष तक पृथ्वी के सबसे प्रमुख स्थलीय कशेरुकी जीव थे। यह ट्राइएसिक काल के अंत (लगभग 23 करोड़ वर्ष पहले) से लेकर क्रीटेशियस काल (लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पहले), के अंत तक अस्तित्व में रहे, इसके बाद इनमें से ज्यादातर क्रीटेशियस -तृतीयक विलुप्ति घटना के फलस्वरूप विलुप्त हो गये। जीवाश्म अभिलेख इंगित करते हैं कि पक्षियों का प्रादुर्भाव जुरासिक कालके दौरान थेरोपोड डायनासोर से हुआ था और अधिकतर जीवाश्म विज्ञानी पक्षियों को डायनासोरों के आज तक जीवित वंशज मानते हैं। हिन्दी में डायनासोरशब्द का अनुवाद भीमसरट है जिस का संस्कृत में अर्थ भयानक छिपकली है।
डायनासोर पशुओं के विविध समूह थे। जीवाश्म विज्ञानियों ने डायनासोर के अब तक 500 विभिन्न वंशों और 1000 से अधिक प्रजातियों की पहचान की है और इनके अवशेष पृथ्वी के हर महाद्वीप पर पाये जाते हैं। कुछ डायनासोर शाकाहारी तो कुछ मांसाहारी थे। कुछ द्विपाद तथा कुछ चौपाये थे, जबकि कुछ आवश्यकता अनुसार द्विपाद या चतुर्पाद के रूप में अपने शरीर की मुद्रा को परिवर्तित कर सकते थे। कई प्रजातियां की कंकालीय संरचना विभिन्न संशोधनों के साथ विकसित हुई थी, जिनमे अस्थीय कवच, सींग या कलगी शामिल हैं। हालांकि डायनासोरों को आम तौर पर उनके बड़े आकार के लिए जाना जाता है, लेकिन कुछ डायनासोर प्रजातियों का आकार मानव के बराबर तो कुछ मानव से छोटे थे। डायनासोर के कुछ सबसे प्रमुख समूह अंडे देने के लिए घोंसले का निर्माण करते थे और आधुनिक पक्षियों के समान अण्डज थे।
"डायनासोर" शब्द को 1842 में सर रिचर्ड ओवेन ने गढ़ा था और इसके लिए उन्होंने ग्रीक शब्द δεινός (डीनोस) "भयानक, शक्तिशाली, चमत्कारिक" + σαῦρος (सॉरॉस) "छिपकली" को प्रयोग किया था। बीसवीं सदी के मध्य तक, वैज्ञानिक समुदाय डायनासोर को एक आलसी, नासमझ और शीत रक्त वाला प्राणी मानते थे, लेकिन 1970 के दशक के बाद हुये अधिकांश अनुसंधान ने इस बात का समर्थन किया है कि यह ऊँची उपापचय दर वाले सक्रिय प्राणी थे।
उन्नीसवीं सदी में पहला डायनासोर जीवाश्म मिलने के बाद से डायनासोर के टंगे कंकाल दुनिया भर के संग्रहालयों में प्रमुख आकर्षण बन गए हैं। डायनासोर दुनियाभर में संस्कृति का एक हिस्सा बन गये हैं और लगातार इनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। दुनिया की कुछ सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबें डायनासोर पर आधारित हैं, साथ ही जुरासिक पार्क जैसी फिल्मों ने इन्हें पूरे विश्व में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनसे जुड़ी नई खोजों को नियमित रूप से मीडिया द्वारा कवर किया जाता ह----------
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Thursday, 10 November 2016
सोमनाथ महालय-चतुरसेन शाश्त्री

सोमनाथ की ऐतिहासिक लूट और पुनर्निर्माण की कहानी को आचार्य चतुरसेन ने इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है। सोमनाथ का मंदिर सैकड़ों देवदासियों के नृत्यों से, उनके घुँघरूओं की ध्वनि से सदा गुंजित रहता था। देश-देशान्तर के राजा और रंग इसके वैभव के समक्ष नतमस्तक होते थे। फिर भी एक विदेशी द्वारा इसे ध्वस्त करने का दुस्साहस किया गया। इतिहास की इस विडंबना को आचार्य चतुरसेन ने औपन्यासिक शैली में बाँधा है। प्रभासपट्टन स्थित सोमनाथ मंदिर भारतीयों की धर्म-परायणता का जीवंत प्रमाण है। विदेशी आक्रमण कारियों ने इसके वैभव से प्रभावित होकर अनेक बार इस मंदिर को लूटा और ध्वस्त किया। महमूद गजनबी सोलह बार यहाँ की धन-सम्पत्ति को ऊंटों में लादकर ले गया, परन्तु फिर भी इसका अस्तित्व समाप्त नहीं हुआ। गहन अध्ययन और उस क्षेत्र के विस्तृत सर्वेक्षण के आधार पर लिखा गया यह उपन्यास, इतिहास का जीवंत दस्तावेज है----
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Sunday, 6 November 2016
विश्व प्रसिद्ध उपन्यास
इस पुस्तक में २१ विश्व प्रसिद्ध उपन्यासों का संक्षेप स्टोरीले दिया गया है
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Friday, 4 November 2016
ये कोठेवालियाँ-अमृतलाल नागर

आज के भारतीय समाज में वेश्याओं के जीवन का हिन्दी या किसी भी अन्य भारतीय भाषा में, यह पहला विश्लेषणात्मक अध्ययन है। श्री अमृतलाल नागर ने बहुत समीप से और बहुत ही सहानुभूनि से इस जीवन को देखा है, जिसे आमतौर पर रंगीन और ऐयाशी से पूर्ण समझा जाता है, लेकिन जो संघर्ष और निराशाओं से वैसे ही भरा है, जैसे कि अन्य सामान्य जीवन। इस अध्ययन में किसी उपन्यास से भी अधिक रोचकता है और सत्य पर आधारित होने के कारण इसकी प्रामाणिकता अद्वितीय है---- इसे हर पुस्तक प्रेमी को अबस्य पढ़ना चाहिए ------------------
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Thursday, 3 November 2016
यूरोप की श्रेष्ठ कहानियाँ

जब हम विदेश की बात करते हैं तो उसमें सिर्फ बड़े-बड़े देश ही नहीं बल्कि कई छोटे देश भी शामिल होते हैं । विभिन्न देशों के साहित्य, विशेषकर कथा-साहित्य, के बारे में भी यही बात लागू होती है । इसीलिए इंग्लैंड (अंग्रेजी), रूस (रूसी), जर्मनी (जर्मन) तथा स्पेन (स्पेनिश) की श्रेष्ठ और प्रसिद्ध कहानियों के अतिरिक्त एक अलग अर्थात् प्रस्तुत पुस्तक में यूरोप के कई अन्य, जैसे-स्वीडन, नार्वे, फिनलैंड, हॉलैंड, डेनमार्क, हंगरी, रूमानिया, सर्बिया आदि देशों के साहित्य की प्रसिद्ध और चर्चित कहानियों के हिंदी अनुवाद दिए गए हैं । हिंदीभाषी साहित्यकारों, पत्रकारों, प्राध्यापकों तथा शोधकर्ताओं के अतिरिक्त सामान्य प्रबुद्ध पाठकों के लिए भी इस पुष्प गुच्छ का विशिष्ट महत्व होगा, इसमें दो मत नहीं हो सकते; निश्चित रूप से इसलिए भी कि ये सभी एक साथ लगभग अप्राप्य हैं ।
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