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Thursday, 6 October 2016

सोना और खून -भाग 1-आचार्य चतुरसेन


 सोना पूँजी का प्रतीक है और खून युद्ध का। युद्ध प्रायः पूँजी के लिए होते हैं और पूँजी से ही लड़े जाते हैं।...................++++++++++ सोना और खून पूँजी के लिए लड़े जाने वाले एक महान युद्ध की विशाल पृष्ठभूमि पर आधारित ऐतिहासिक उपन्यास है, आचार्य जी का सबसे बड़ा उपन्यास। इस उपन्यास के चार भाग है। 1.तूफान से पहले 2.तूफान 3.तूफान के बाद और 4.चिनगारियाँ। ये चारों भाग मुख्य कथा से सम्बद्ध होते हुए भी अपने में पूर्ण स्वतन्त्र है भारत में अंग्रेजी राज स्थापित होने की पूरी पृष्ठभूमि से आरम्भ होकर स्वतन्त्रता-प्राप्ति तक का सारा इतिहास सरस कथा के माध्यम से इसमें आ गया है। इसमें आचार्य जी ने प्रतिपादित किया है कि भारत को अंग्रेजों ने नहीं जीता और 1857 की क्रांति राष्ट्रीय भावना पर आधारित नहीं थी। साथ ही वतन की स्वतन्त्रता प्राप्ति पर उस क्रांति का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यह उपन्यास एक अलग तरह की विशेषता लिए हुए हैं। इतिहास और कल्पना का ऐसा अद्भुत समन्वय ...................आचार्यजी जैसे सिद्धहस्त कलाकार की लेखनी से ही सम्भव था।

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5 comments:

  1. Bahut bahut dhanyawad Raviji is novel k liye...agale bhaag ka besabri se intejaar rahega

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    1. कोशीश करुगा जल्दी ही अपलोड कर दु......... कमेंट के लिए धन्यबाद---

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  2. Kripaya agala bhaag upload karein...

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    1. Jarur .....jaldi hi upload karuga....

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    2. Part 2 kab upload karenge Raviji?....Plz upload soon

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