जातक-कथाएँ भगवान बुद्ध के पूर्वजन्मों से सम्बन्धित हैं। बोधिसत्व की चर्याओं का उनमें वर्णन है। अतः वे सभी प्रायः उपदेशात्मक है। परन्तु उनका साहित्यिक रूप भी निखरा हुआ है। उपदेशात्मक होते हुए भी वे पूरे अर्थों में कलात्मक है। जातक के आदि में निदान-कथा (उपोद्घात) है, जिसमे भगवान् बुद्ध के पहले 24 बुद्धों के विवरण के साथ-साथ भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी लेतवन विहार के दान की स्वीकृति तक दी गई है। कुछ जातक कथाओं का सारांश तथा उनकी विषय-वस्तु का रूप निम्नलिखित इस प्रकार स्पष्ट है।
अपण्णक जातक व्यापार के लिए जाते हुए दो बनजारों की कथा है। एक दैत्यों के हाथ मारा गया, दूसरा बुद्धिमान होने के कारण अपने पाँच सौ साथियों सहित सकुशल घर लौट आया।
कण्डिन जातक (कण्डि जातक-13) कामुकता के कारण एक मृग शिकारी के हाथों मारा गया।
मखादेव जातक (9) - सिर के सफेद बाल देखकर राजा सिंहासन छोड़ कर वन चला गया।
सम्मोदमान जातक (33) - एक मत बटेरों का चिड़ीमार कुछ न बिगाड सका, परन्तु जब उनमें फूट पड़ गई तो सभी चिड़िमार के जाल में फँस गये।
तित्तिर जातक (37)-बन्दर, हाथी और तित्तिर ने आपस में विचार कर निश्चय किया कि जो ज्येष्ठ हो उसका आदर करना चाहिए।
बक जातक (9)-बगुले ने मछलियों को धोखा दे देकर एक-एक को ले जाकर मार खाया। अंत में वह एक केकड़े के हाथ से मारा गया।
कण्ह जातक (29)-एक बैल ने अपनी बु़ढ़ या माँ को जिसने उसे पाला था, मजदूरी से कमाकर हक हजार कार्षापण ला कर दिये।
वेकुक जातक (43) - तपस्वी ने साँप के बच्चे को पाला जिसने उसे डँस कर मार डाला।
रोहिणी जातक (45)-रोहिणी नामक दासी ने अपनी माता के सिर की मक्खियाँ हटाने के लिए जाकर माता को मार डाला।
वानरिन्द जातक (57)-मगरमच्छ अपनी स्त्री के कहने से वानर का हृदय चाहता था। वानर अपनी चतुरता से बच निकला।
कुद्दाल जातक (70)-कुद्दाल पंडित कुद्दाल के मोह में पड़कर छह बार गृहस्थ और प्रव्रजित हुआ।
सीलवनागराज जातक (72)-वन में रास्ता भूले हुए एक आदमी की हाथी ने जान बचाई।
खरस्सर जातक (79)-गाँव का मुखिया चोरों से मिलकर गाँव लुटवाता था।
नामसिद्धि जातक (97)-पापक नामक विद्यार्थी एक अच्छे नाम की तलाश में बहुत घूमा। अन्त में यह समझकर कि नाम केवल बुलाने के लिए होता है वह लौट आया।
अकालरावी जातक (119)-असमय शोर मचाने वाला मुर्गा विद्यार्थियों द्वारा मार डाला गया।
विळारवत जातक (128)- धर्म का ढोंग कर गीदड़ चूहों को खाता था।
गोध जातक (141)-गोह की गिरगिट के साथ मित्रता उसके कुल विनाश का कारण हुई।
विरोजन जातक (143)-गीदड़ ने शेर की नकल करके पराक्रम दिखाना चाहा। हाथी ने उसे पाँव से रौंद कर उस पर लीद कर दी।
गुण जातक (157)-दलदल में फसे सिंह को सियार ने बाहर निकाला।
मक्कट जातक (173)-बन्दर तपस्वी का वेश बना कर आया।
आदिच्चुपट्ठान जातक (175)-बन्दर ने सूर्य की पूजा करने का ढोंग बनाया।
कच्छप जातक (178)-जन्मभूमि के मोह के कारण कछुए की जान गई।
गिरिदत्त जातक(184) -शिक्षक के लँगड़ा होने के कारण घोड़ा लँगड़ा कर चलने लगा।
सीहचम्म जातक (189)-सिंह की खाल पहनकर गधा खेत चरता रहा, किन्तु बोलने पर मारा गया।
महापिंगल जातक (240)-राजा मर गया फिर भी द्वारपाल को भय था कि अत्याचारी राजा यमराज के पास से कहीं लौट न आवे।
आरामदूसक जातक (46 तथा 28)-बन्दरों ने पौधों को उखाड़ कर उनकी जड़ें नाप-नाप पर पानी सींचा।
कुटिदूसक जातक (321)-बन्दर ने बये के सदुपदेश को सुन कर उसका घोसलां नोच डाला।
बावेरू जातक (339)-बावेरू राष्ट्र में कौआ सौ कार्षापण में और मोर एक हजार कार्षापण में बिका।
वानर जातक (342)-मगरमच्छनी ने बन्दर का हृदय-मांस खाना चाहा।
सन्धिभेद जातक - गीदड़ ने चुगली कर सिंह और बैल को परस्पर लड़वा दिया आदि आदि।
वानरिन्द जातक(57) विलारवत जातक(128) , सीहचम्म जातक(189), सुंसुमार जातक(208), और सन्धिभेद जातक(349) आदि। जातक कथाएँ पशु-कथाएँ है। ये कथाएँ अत्यधिक महत्वपूर्ण है। विशेषतः इन्हीं कथाओं का गमन विदेशों में हुआ है। व्यंग्य का पुट भी यहाँ अपने काव्यात्मक रूप से दृष्टिगोचर होता है। प्रायः पशुओं की तुलना में मनुष्यों को हीन दिखाया गया है। एक विशेष बात यह है कि व्यंग्य किसी व्यक्ति पर न कर सम्पूर्ण जाति पर किया गया है।
एक बन्दर कुछ दिनों के लिए मनुष्यों के बीच आकर रहा। बाद में अपने साथियों के पास जाता है। साथी पूछते है-‘‘मनुष्यों के समाज में रहे है। उनका बर्ताव जानते हैं। हमें भी कहें। हम उसे सुनना चाहते हैं।‘‘ मनुष्यों की करनी मुझसे मत पूछो। कहे, हम सुनना चाहते हैं। बन्दर ने कहना शुरू किया,‘‘ हिरण्य मेरा! सोना मेरा! यही रात दिन वे चिल्लाते है। घर में दो लोग रहते हैं। एक को मूँछ नहीं होती। उसके लम्बे केश होते है, वेणी होती है और कानों में छेद होते हैं। उसे बहुत धन से खरीदा जाता है। वह सब जनों को कष्ट देता है।‘‘ बन्दर कह ही रहा था कि उसके साथियों ने कान बन्द कर लिए‘‘ मत कहें मत कहें‘‘। इस प्रकार के मधुर और अनूठे व्यंग्य के अनेकों चित्र जातक में मिलेगें। विशेषतः मनुष्य के अहंकार के मिथ्यापन के सम्बन्ध में मर्मस्पर्शी व्यंग्य। महापिंगल जातक(240) में, ब्राह्मणों की लोभवृत्ति के सम्बन्ध में सिगाल जातक(113) में एक अति बुद्धिमान तपस्वी के सम्बन्ध में, अवारिय जातक (376)में है। सब्बदाठ नामक श्रृंगाल सम्बन्धी हास्य और विनोद भी बड़ा मधुर है (सब्बदाठ जातक 241) और इसी प्रकार मक्खी हटाने के प्रयत्न में दासी का मूसल से अपनी माता को मार देना (रोहिणी जातक 45) और बन्दरों का पौधों का उखाड़ कर पानी देना भी मधुर विनोद से भरे हुए हैं।
इसी प्रकार रोमांच के रूप में महाउम्मग्ग जातक (546) आदि नाटकीय आख्यान के रूप में छदन्त जातक (514) आदि, एक ही विषय पर कहे हुए कथनों के संकलन के रूप में कुणाल जातक (536) आदि, संक्षिप्त नाटक के रूप में उम्मदन्ती जातक (527) आदि, नीतिपरक कथाओं के रूप में गुण जातक (157) आदि, पूरे महाकाव्य के रूप में पेस्सन्तर जातक (547) आदि एवं ऐतिहासिक संवादों के रूप में संकिच्च जातक (530) और महानारदकस्सप जातक (544) आदि। अनेक प्रकार के वर्णनात्मक आख्यान जातक में भरे पड़े हैं, जिनकी साहित्यिक विशेषताओं का उल्लेख यहाँ अत्यन्त संक्षिप्त रूप में भी नहीं किया जा सकता।