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Saturday, 17 December 2016

दर्पण के व्यक्ति-विष्णु प्रभाकर

विष्णु प्रभाकर का जन्म 21 जून, सन 1912 को मीरापुर, ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। इन्हें इनके एक अन्य नाम 'विष्णु दयाल' से भी जाना जाता है। इनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद था, जो धार्मिक विचारधारा वाले व्यक्तित्व के धनी थे। प्रभाकर जी की माता महादेवी पढ़ी-लिखी महिला थीं, जिन्होंने अपने समय में पर्दाप्रथा का घोर विरोध किया था। प्रभाकर जी की पत्नी का नाम सुशीला था।

शिक्षा

विष्णु प्रभाकर की आरंभिक शिक्षा मीरापुर में हुई थी। उन्होंने सन 1929 में चंदूलाल एंग्लो-वैदिक हाई स्कूल, हिसार से मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसके उपरांत नौकरी करते हुए पंजाब विश्वविद्यालय से 'भूषण', 'प्राज्ञ', 'विशारद' और 'प्रभाकर' आदि की हिंदी-संस्कृत परीक्षाएँ भी उत्तीर्ण कीं। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से ही बी.ए. की डिग्री भी प्राप्त की थी।

व्यवसाय

प्रभाकर जी के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। यही कारण था कि उन्हें काफ़ी कठिनाइयों और समस्याओं का सामना करना पड़ा था। वे अपनी शिक्षा भली प्रकार से प्राप्त नहीं कर पाये थे। अपनी घर की परेशानियों और ज़िम्मेदारियों के बोझ से उन्होंने स्वयं को मज़बूत बना लिया। उन्होंने चतुर्थ श्रेणी की एक सरकारी नौकरी प्राप्त की। इस नौकरी के जरिए पारिश्रमिक रूप में उन्हें मात्र 18 रुपये प्रतिमाह का वेतन प्राप्त होता था। विष्णु प्रभाकर जी ने जो डिग्रियाँ और उच्च शिक्षा प्राप्त की, तथा अपने घर-परिवार की ज़िम्मेदारियों को पूरी तरह निभाया, वह उनके अथक प्रयासों का ही परिणाम था।

विष्णु प्रभाकर जी की प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं[1]-
  1. कहानी संग्रह - 'संघर्ष के बाद', 'धरती अब भी धूम रही है', 'मेरा वतन', 'खिलौने', 'आदि और अन्त', 'एक आसमान के नीचे', 'अधूरी कहानी', 'कौन जीता कौन हारा', 'तपोवन की कहानियाँ', 'पाप का घड़ा', 'मोती किसके'।
  2. बाल कथा संग्रह - 'क्षमादान', 'गजनन्दन लाल के कारनामे', 'घमंड का फल', 'दो मित्र', 'सुनो कहानी', 'हीरे की पहचान'।

  1. उपन्यास -ढलती रात  • निशिकांत  • तट के बंधन  • स्वप्नमयी  • दर्पण का व्यक्ति  • परछाईं  • कोई तो  • अर्धनारीश्वर  • संकल्प ', 'स्वप्नमयी', 'अर्द्धनारीश्वर', 'धरती अब भी घूम रही है', 'पाप का घड़ा', 'होरी', 'कोई तो', 'निशिकान्त', 'तट के बंधन', 'स्वराज्य की कहानी'।

  1. आत्मकथा - 'क्षमादान' और 'पंखहीन' नाम से उनकी आत्मकथा 3 भागों में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हो चुकी है। 'और पंछी उड़ गया', 'मुक्त गगन में'।
  2. नाटक - 'सत्ता के आर-पार', 'हत्या के बाद', 'नवप्रभात', 'डॉक्टर', 'प्रकाश और परछाइयाँ', 'बारह एकांकी', अब और नही, टूट्ते परिवेश, गान्धार की भिक्षुणी और 'अशोक'
  3. जीवनी - 'आवारा मसीहा', 'अमर शहीद भगत सिंह'।
  4. यात्रा वृतान्त - 'ज्योतिपुन्ज हिमालय', 'जमुना गंगा के नैहर में', 'हँसते निर्झर दहकती भट्ठी'।
  5. संस्मरण - 'हमसफर मिलते रहे'।
  6. कविता संग्रह - ‘चलता चला जाऊंगा’ (एकमात्र कविता संग्रह)।


DOWNLOAD- 1.  दर्पण के व्यक्ति
                          2. दर्पण के व्यक्ति

2 comments:

  1. Gr8 upload Raviji...Thanks..

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    1. Dhanybad rani ji ...........aapke is hausla afjai ke liye........

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