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Sunday, 27 August 2017

हमे कैसे पता चला प्रकाश के गति के बारे मे ? - आइसक असिमोव

आवाज़ तेरी है-राजेंद्र यादव

प्रमुख कृतियाँ

उपन्यास
  • सारा आकाश
  • उखड़े हुए लोग
  • शह और मात
  • एक इंच मुस्कान
  • कुलटा
  • अनदेखे अनजाने पुल
  • मंत्र विद्ध
  • स्वरूप और संवेदना
  • एक था शैलेन्द्र
कहानी संग्रह
  • देवताओं की मूर्तियां
  • खेल खिलौने
  • जहां लक्ष्मी कैद है
  • छोटे-छोटे ताजमहल
  • किनारे से किनारे तक
  • टूटना
  • ढोल और अपने पार
  • वहां पहुंचने की दौड़
कविता संग्रह
  • आवाज़ तेरी है
आलोचना
  • कहानी : अनुभव और अभिव्यक्ति
  • कांटे की बात - बारह खंड
  • प्रेमचंद की विरासत
  • अठारह उपन्यास
  • औरों के बहाने
  • आदमी की निगाह में औरत
  • वे देवता नहीं हैं
  • मुड़-मुड़के देखता हूं
  • अब वे वहां नहीं रहते
  • काश, मैं राष्ट्रद्रोही होता
आवाज तेरी है -राजेंद्र यादव
आवाज तेरी है -राजेंद्र यादव

Saturday, 26 August 2017

गदर के फूल-अमृत लाल नागर


यशस्वी साहित्यकार अमृतलाल नागर की यह कृति ‘गदर के फूल’ सत्तावनी क्रान्ति संबंधी स्मृतियों और किंवदंतियों का प्रामाणिक दस्तावेज है।भारत की स्वतन्त्रता के लिए 1857 में क्रान्ति की एक चिंगारी भड़की थी जिसे अंग्रेजों ने ‘गदर’ का नाम दिया था। उस काल के व्यक्ति अब छीजते जा रहे हैं। उन्हीं स्मृतियों को नागर जी ने इस पुस्तक में संजोया है।अवध में घूम-घूमकर, उस काल के प्रत्यक्षदर्शी लोगों के संस्मरणों के माध्यम से तथा अन्य उपलब्ध ऐतिहासिक प्रमाणों को आधार बनाकर नागर जी ने इस पुस्तक की सामग्री का संचयन किया है।



गदर के फूल-अमृत लाल नागर
गदर के फूल-अमृत लाल नागर

Tuesday, 22 August 2017

परशुराम-नरोतम व्यास

परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) के एक मुनि थे। पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। वे भगवान विष्णु के आवेशावतार थे। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से सारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया।
परशुराम महर्षि जमदग्नि और रेणुका के सबसे छोटे पुत्र हैं इस समय वो महेंद्रगिरि नामक पर्वत पर आज भी अपने सुक्ष्म शरीर से तपस्या में लीन हैं. पूर्व काल में क्षत्रिय राजा बहुत अत्याचारी और तामसी प्रवर्ती के हो गये थे तब नारायण ने अपने अंश से परशुराम रुप में अवतार लिया और पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रिय राजाओं से रहित कर दिया (सम्पूर्ण क्षत्रियों से नहीं वरन् मात्र क्षत्रिय राजाओं का सेना सहित अंत कर दिया था). जब क्षत्रिय राजाओं की शक्ति बढ गई और उन्हें किसी बात का डर नहीं रहा, क्युँकि यदा कदा मानवों और पृथ्वी पर अत्याचार करने वाले दानव, देवताओं से डरे हुए थे और वो छुप कर रहते थे. क्षत्रिय समाज को पहले तो दानवों और देवताओं का डर था, लेकिन जब दानव शांत थे तो देवता भी शांत बैठ गये, तब पृथ्वी में क्षत्रिय समाज के राजा धीरे-धीरे निर्कुंश होते गये, प्रजा को भी तंग करने लगे. इसके अतिरिक्त कई दानव भी क्षत्रिय कुल में जन्म लिये, जो ब्राह्मण नीति की बातों से उनका विरोध करता था उनको भी अपमानित करने लगे. ऐसे ही क्षत्रियों में एक राजा था सहस्त्रबाहु अर्जुन, जिसका उल्लेख पहले हो चुका है जिसने रावण को कैद कर लिया था. वो इतना निर्कुंश हो गया था कि एक बार वो अपनी सैनिकों के साथ कहीं जा रहा था रास्ते में आश्रम देखा और उसने घमण्ड और अहंकार में बिना कारण न जाने क्युँ आश्रम को पानी से भर दिया. उसी समय एक बाहर से एक मुनि आये और उन्होने देखा सहस्त्रबाहू अपनी शक्ति का प्रयोग करके आश्रम में पानी भर दिया तो उन्होंने पूछा ये क्या कर रहे हो और क्युं कर रहे हो देखते नहीं ये मेरा आश्रम है. सहस्त्रबाहू बडी धृष्ठता के साथ ठहाके लगा कर हँसने लगा उसे पता भी नहीं था कि ये महर्षि वशिष्ठ हैं. महर्षि वशिष्ठ ने सहस्त्रबाहु अर्जुन को उसकी हरकत पर डपट दिया, तो वो अभिमान मे बोला आप दुबले पतले ब्राह्मण हो, नहीं तो मैं इस वक्त आपको दंड देता कि मुझसे इस तरह बात करने का नतीजा क्या हो सकता है. इस अर्जुन को दत्तात्रेय भगवान से वरदान प्राप्त था कि युद्द करते समय उसके एक हजार हाथ हो जाएंगे इसलिये उसका नाम सहस्त्रबाहु भी हो गया, उसकी इस मूर्खता पर महर्षी ने उसे कहा चिंता मत कर तुम और तुम्हारे जैसे घमण्डी लोग जो ब्राह्मणों को बाहुबल में कमजोर मानते हैं और उपहास या अपमान करते हैं उन सबको शीघ्र ऐसा ब्राह्मण मिलेगा जो अपने बाहुबल से ही तुम सब का अंत करेगा.  परशुराम वही बाहुबली ब्राह्मण थे. अपने पिता के सबसे बडे आज्ञाँकारी बालक, एक दिन उनके पिता जमदग्नि यज्ञ के लिये परशुराम की माता रेणुका से कहा, वो समिधा ले आए पास के वन से. लेकिन वो समय पर नहीं आई और यज्ञ का समय निकल गया. इस पर जमदग्नि ने रेणुका से कारण पूछा कि वो देर से क्युँ आई इस पर रेणुका ने झूठ बोल दिया कि उसे समिधा नहीं मिल पाई और वो काफी आगे निकल गई थी जबकि रेणुका समिधा एकत्र करने के बाद वन में एक नदी के किनारे गंधर्वों को उनकी पत्नीयों के साथ तैराकी करते देखने में ही समय बीत गया था उसे समय का पता ही नहीं चला. महर्षि जमदग्नि ने ध्यान से सब कुछ जान लिया तब उन्हें रेणुका के झूठ बोलने पर क्रोध आया उन्होंने अपने पुत्रों को बुलाया और एक-एक कर सबको कहा कि तुम्हारी माता ने झूठ बोला है अत: अपनी माता का सर काट डालो. बांकी पुत्रों में किसी ने आज्ञाँ नहीं मानी लेकिन जब परशुराम से कहा कि अपनी माता के साथ इन भाइयों का सर भी काट डालो तो उन्होंने बिना विलम्ब के अपनी माँ का और सभी भाइयों का सर काट दिया. महर्षि प्रसन्न हो गये उन्होंने कहा पुत्र तुमने मेरी आज्ञाँ का पालन किया मैं इस बात से बहुत प्रसन्न हूँ तुम मुझसे वरदान माँगो. तब परशुराम जी ने कहा कि मेरी माँ और भाई पुन: जिवित हो जाए लेकिन उनको इस बात की याद न रहे कि उनका सर मैंने काटा था. महर्षी ने वैसा ही किया उनकी माता और भाई को पुन: जिवित कर दिया और उन्हें इस बात का पता भी नहीं चला. तब परशुराम अपने माता पिता से आज्ञाँ ले कर तीर्थ की ओर चल पडे, उन्होंने तपस्या के बल पर मन की गति से किसी भी लोक में जाने की शक्ति प्राप्त की और तपस्या के बल पर कई पुण्य अर्जित कर लिये. एक दिन उनके पिता जमदग्नि ध्यान मे बैठे थे, सहस्त्रबाहु अर्जुन ऊधर से अपनी सेना लेकर जा रहा था और फिर महर्षि के आश्रम में आया, महर्षि ने अर्जुन का सम्मान किया. अर्जुन ने महर्षि के आश्रम में दिव्य गौ कामधेनु को देखा तो उसने मुनि से कहा आप इस कामधेनु को मुझे दे दिजिये. इस पर मुनि ने असहमति जताई और कहा कि उन्हें कुछ काल तक ही इस गौ की सेवा का अवसर दिया गया है और यह गौ सप्तऋषियों की है, लेकिन अर्जुन बल पूर्वक कामधेनु को ले गया. ईधर परशुराम आये और उन्हें बात पता चली तो वो अर्जुन के राजमहल की ओर दौडे और सहस्त्रबाहू अर्जुन को गाय वापस  करने के लिये कहा, लेकिन अभिमान में भरा राजा ने कहा गौ वापस नहीं दुंगा,और तुम कौन हो वापस जाओ. मैं राजा हूँ और राजा का प्रजा की प्रत्येक वस्तु पर अधिकार है इसलिये वापस जाओ नहीं तो बंदी बना कर कारागार में बंद कर दुंगा और सैनिकों से कहा बाहर का रास्ता दिखाओ इसे. इस बात पर परशुराम जी ने क्रोध ने क्षण भर में ही उसके सैनिकों को काट-काट कर समाप्त कर डाला. सहस्त्रबाहु क्रोध से अपने एक हजार हाथ के साथ खडा हुआ और भीषण युद्ध छिड गया महल के बाहर एक तरफ परशुराम अकेले और दुसरी तरफ सहस्त्रबाहु उसके दस हजार पुत्र और हजारों की संख्या में सैनिक थे. जिसे भगवान दत्तात्रेय का आशिर्वाद प्राप्त था कि कोई क्षत्रिय राजा पृथ्वी में उसे ना हरा सकता है और ना उसे प्राक्रम में पीछे छोड सकता है आज वो अपने कई अस्त्र-शस्त्रों के होते अपने अभिमान और अहंकार के चलते परशुराम जी के सामने टिक न सका और परशुराम जी ने उसके महल के बाहर ही उसके एक हजार हाथ काट डाले और उसका अंत कर दिया. उसके दस हजार पुत्रों में से कुछ ही बचे अन्य सब मारे गये. परशुराम अपनी गाय कामधेनु को वापस ले आये और पिताजी को दे दी. सब समाचार सुनाया. महर्षि जमदग्नि ने कहा कि पुत्र तुमने एक राजा की हत्या करके ठीक नहीं किया, इस पर परशुराम जी ने कहा  कि पिताजी उसे मारना मैं भी नहीं चाहता था किंतु शुरुवाद उसकी ओर से हुई और मुझे बंदी बनाने का आदेश उसने ही दिया था और एक मुनि की गाय को जबरन छिन लेना एक राजा का अधर्म है. सहस्त्रबाहु धर्म पारायण भी नहीं रहा था, वो अभिमानी और अहंकारी हो चुका था.
एक दिन अर्जुन के आठ या दस पुत्र जो जिवित बचे थे, उन्हें पता चला  परशुराम तीर्थ यात्रा पर गये हैं अत: उन्होंने अपने पिता सहस्त्रबाहु की मृत्यु का बदला लेने के लिये इसे उपयुक्त अवसर समझा. आश्रम में मुनि और उनकि पत्नी रेणुका के अलावा कोई नहीं था, मुनि ध्यान में बैठे थे तब सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने मुनि का सर काट दिया और रेणुका को भी पीट गये. रेणुका ने अपने पुत्र परशुराम को पुकारा जो उस वक्त तपस्या में लीन थे. लेकिन माँ की आवाज उनके कानों तक पहुंच गई और मन की शक्ति से चलने वाले महर्षि क्षण भर में अपने घर पहुंचे और सब कुछ माँ के मुँह से सुना, तब क्रोध में अपने पिता की देह को अपने भाइयों को सौंप कर वे सहस्त्रबाहु के पुत्रों की ओर बडे वेग से आकाश मार्ग से उनके महल में पहुँच गये, उनको आया देख सब भय ग्रस्त हो गये और फिर परशुराम जी पर आक्रमण कर दिया. लेकिन कुछ ही समय में समूची सेना को परशुरामजी ने समाप्त कर दिया अंत में सहस्त्रबाहु के सभी पुत्रों को समाप्त कर डाला. वापस आकर अपने पिता के मस्तक को जोडने के लिये अपने पिता के शरीर और मस्तक को लेकर कुरुक्षेत्र गये वहाँ यज्ञ किया, यज्ञ के लिये चार दिशाओं को क्रमश: ब्रह्मा और आचार्य नियुक्त किया. यज्ञ के अंत में महर्षी जमदग्नि के सर को पुन: जोड्कर मृतसंजीवनी विद्या के द्वारा जिवित कर दिया और अपने पिता जमदग्नि को सप्तऋषी  मंडल में सातवें सप्त ऋषि के रुप में प्रतिष्ठित कर दिया तथा सहस्त्रबाहु के राज्य को ब्राह्मणों को दान में दे दिया. सहस्त्रबाहु उस वक्त का सबसे शक्तिशालि क्षत्रिय राजा था अन्य क्षत्रिय राजाओं को परशुराम का प्राक्रम सहन नहीं हुआ, उन्हें एक ब्राह्मण के द्वारा एक सबसे शक्तिशाली क्षत्रिय राजा का युँ पराजित होना, सम्पूर्ण क्षत्रिय समाज का अपमान लगने लगा. अत: एक दिन योजनाबद्ध तरीके से सभी क्षत्रिय राजाओं ने मिलकर परशुराम पर आक्रमण कर दिया, लेकिन परशुराम के आगे सम्पूर्ण क्षत्रिय समाज के जितने भी घमण्डी वीर थे वो नहीं टिक सके और भाग खडे हुए. तब उनकी इस हरकत पर परशुराम को इतना क्रोध आया कि उन्होंने निश्चय किया और संकल्प लिया कि अब वो पृथ्वी पर एक भी क्षत्रिय राजा को जिवित नहीं छोडेंगे और उन्होंने सभी क्षत्रिय राजाओं का नामो निशान पृथ्वी से मिटा दिया और सम्पूर्ण पृथ्वी ब्राह्मणों को दान मे दे दी. स्वयं तप करने चले गये और हजारों वर्ष तक तप में लीन रहे, इतने समय में ब्रह्मा जी की प्रेरणा से  ब्राह्मणों ने पुन: क्षत्रियों को क्षिक्षित दीक्षित करके राजा बनाया, उनको जो भूमि परशुराम जी ने दान में मिली थी उसे क्षत्रिय राजाओं को दिया ताकि पृथ्वी पर सही ढंग से व्यवस्था चलती रहे. हजारों साल के बाद जब तपस्या से परशुराम ऊठे और देखा कि फिर से क्षत्रिय राजा बने हैं, बस इस बात पर उन्होंने फिर से एक बार और पृथ्वी को क्षत्रिय राजाओं से रहित कर दिया और फिर से  तप करने चले गये. फिर से वही कहाँनी हुई और परशुराम जी ने इस तरह ईक्कीस बार समूची पृथ्वी को क्षत्रिय राजाओं से विहिन कर दिया. और इस बार ब्रह्मा जी ने महर्षि कश्यप को बुलाया और कहा कि परशुराम को सम्भालो, ईक्कीसवीं बार वो क्षत्रिय राजाओं का संहार कर चुके हैं अब बहुत हुआ. राजा के बिना राज्य नहीं छोडा जा सकता हैं प्रजा में समाज में धर्म का पालन राजा को ही करवाना होता है इसलिये राजा का होना आवश्यक है. आप उनके गुरु हैं और आपकी बात वो मानेगें. तब ब्रह्मदेव की आज्ञाँ मानकर महर्षि कश्यप आये और परशुराम जी ने उनकी चरण वंदना की और समूची पृथ्वी महर्षी कश्यप को दान में दे दी. महर्षि कश्यप ने कहा मैं दान स्वीकार करता हूँ अब यह मेरे अधिकार में है अत: आज के बाद तुम मेरी इस धरती पर पैर भी नहीं रखोगे और ना ही कभी रात्रि में भी यहाँ विश्राम करोगे. परशुराम जी ने आज्ञाँ स्वीकार कर ली और आकाश मार्ग से समुद्र के निकट गये और अपने रहने के लिये स्थान देने को कहा. तब समुद्र ने भयग्रस्त हो कर बिना देरी किये कहा महर्षि आप आप को जितनी भूमि चाहिये उसके लिये आप अपना फरसा मेरी तरफ समुद्र में फेंक दें  मैं आपको अपने गर्भगृह से उतनी धरती दे सकुंगा महर्षि ने कहा  ठीक है परंतु जब मैं मांगू तो मेरा फरसा मुझे वापस भी दे देना और अपना फरसा समुद्र में फेंक दिया तब समुद्र ने अपने गर्भगृह से महेंद्रगिरि पर्वत को पृकट किया और महर्षि परशुराम उस पर्वत पर पुन: तपस्या में लीन हो गये और आज भी वो वहाँ अपने सूक्ष्म रुप में रहते हैं. 
Ref “प्रबोध शक्ति” by चंद्रशेखर पंत 
राजा रवि वर्मा द्वारा परशुराम जी का चित्र।
वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्मद्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त "शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र" भी लिखा। इच्छित फल-प्रदाता परशुराम गायत्री है-"ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नोपरशुराम: प्रचोदयात्।" वे पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। उन्होंने अत्रि की पत्नी अनसूयाअगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था। अवशेष कार्यो में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है।












                                                                           परशुराम-नरोतम व्यास
परशुराम-नरोतम व्यास

Tuesday, 15 August 2017

बैताल पच्चीसी-बेतालभट्ट


वेताल पचीसी या बेताल पच्चीसी (संस्कृत:बेतालपञ्चविंशतिका) पच्चीस कथाओं से युक्त एक ग्रन्थ है। इसके रचयिता बेतालभट्ट बताये जाते हैं जो न्याय के लिये प्रसिद्ध राजा विक्रम के नौ रत्नों में से एक थे। ये कथायें राजा विक्रम की न्याय-शक्ति का बोध कराती हैं। बेताल प्रतिदिन एक कहानी सुनाता है और अन्त में राजा से ऐसा प्रश्न कर देता है कि राजा को उसका उत्तर देना ही पड़ता है। उसने शर्त लगा रखी है कि अगर राजा बोलेगा तो वह उससे रूठकर फिर से पेड़ पर जा लटकेगा। लेकिन यह जानते हुए भी सवाल सामने आने पर राजा से चुप नहीं रहा जाता।


बैताल पच्चीसी-बेतालभट्ट
बैताल पच्चीसी-बेतालभट्ट

Thursday, 10 August 2017

चाणक्य और चन्द्रगुप्त -लक्ष्मीधर वाजपेयी

चाणक्य और चन्द्रगुप्त ऐसे नाम हैं जिनके बिना भारतीय इतिहास और राजनीति का वर्णन अधूरा है। भारत में तो चाणक्य नीति को ही वास्तविक राजनीति माना जाता है और मगध नरेश के महामंत्री कौटिल्य की कूटनीति जगप्रसिद्ध है। चाणक्य ने मगध के राजदरबार में हुए अपमान के कारण नंदवंश का समूल नाश करने की प्रतिज्ञा की, और षड्यंत्र रच कर मगध नरेश धनानन्द एवं उसके आठ पुत्रों की हत्या कराने के पश्चात् चन्द्रगुप्त को पाटलिपुत्र के सिंहासन पर विराजमान करा diya


चाणक्य और चन्द्रगुप्त -लक्ष्मीधर वाजपेयी
चाणक्य और चन्द्रगुप्त -लक्ष्मीधर वाजपेयी

चित्रकथा

चित्रकथा
१. अकबरी खजाना                         १. अकबरी खजाना           
२. 

Sunday, 6 August 2017

लोपामुद्रा-कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी

‘आर्यावर्त की महागाथा’ के नाम से मुंशीजी ने तीन खण्डों में वैदिककालीन आर्य संस्कृति के धुँधले इतिहास को सुस्पष्ट करके उपस्थित किया है। इसमें वैदिक सभ्यता और संस्कृति का बहुत ही सुन्दर और अधिकृत चित्रण है। यह पुस्तक उसका पहला खण्ड है। 

इस पुस्तक में ऋषि विश्वामित्र के जन्म और बाल्यकाल का वर्णन है। उनका अगस्त्य ऋषि के पास विद्याध्ययन, दस्युराज शम्बर द्वारा अपहरण, शम्बर-कन्या उग्रा से प्रेम-सम्बन्ध और इसके परिणामस्वरूप आर्य-मात्र में विचार-संघर्ष, ऋषि लोपामुद्रा का आशीर्वाद और अन्त में उनका राज्य-त्याग–इन सब घटनाओं को विद्वान् लेखक ने अपनी विलक्षण प्रतिभा और कमनीय कल्पना के योग से अनुप्राणित किया है। मुंशीजी की अन्य सभी कृतियों की तरह यह पुस्तक भी अद्भुत एवं अतीव रसमय है।

लोपामुद्रा-कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी
लोपामुद्रा-कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी

The Hardy Boys Mystery Stories (31 to 35)-Frenklin W Dixon

                                                                                                                                                                                  































































                            31. The Secret of Wildcat Swamp      31. The Secret of Wildcat Swamp