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Tuesday, 26 September 2017

इत्सिंग की भारत यात्रा-संतराम बी.ए

इत्सिंग एक चीनी यात्री एवं बौद्ध भिक्षु था, जो ६७१-६९५ ई. में भारत आया था। वह ६७५ ई में सुमात्रा के रास्ते समुद्री मार्ग से भारत आया था और 10 वर्षों तक 'नालन्दा विश्वविद्यालय' में रहा था। उसने वहाँ के प्रसिद्ध आचार्यों से संस्कृत तथा बौद्ध धर्म के ग्रन्थों को पढ़ा।
691 ई. में इत्सिंग ने अपना प्रसिद्ध ग्रन्थ 'भारत तथा मलय द्वीपपुंज में प्रचलित बौद्ध धर्म का विवरण' लिखा। उसने 'नालन्दा' एवं 'विक्रमशिला विश्वविद्यालय' तथा उस समय के भारत पर प्रकाश डाला है। इस ग्रन्थ से हमें उस काल के भारत के राजनीतिक इतिहास के बारे में तो अधिक जानकारी नहीं मिलती, परन्तु यह ग्रन्थ बौद्ध धर्म और 'संस्कृत साहित्य' के इतिहास का अमूल्य स्रोत माना जाता है।

Sunday, 17 September 2017

न जन्म न मृत्यु -ओशो

जो भी जन्‍मता है, वह मरता है। जो भी उत्‍पन्‍न होता है, वह विनष्‍ट होता है। जो भी निर्मित होगा, वह बिखरेगा, समाप्त होगा। हमारे सुख-दुख, हमारी इस भ्रांति से जन्‍मते हैं कि जो भी मिला है वह रहेगा। प्रियजन आकर मिलता है, तो सुख मिलता है, लेकिन जो आकर मिलेगा, वह जाएगा। जहां मिलन है वहां विरह है मिलने में विरह को देख लें तो उसके मिलने का सुख विलीन हो जाता है और उसके विरह का दुख भी विलीन हो जाता है। जो जन्‍म में मृत्‍यु को देख ले उससे जन्म की सुखी विदा हो जाती है, उसकी मृत्‍यु का दुख हो जाता है और जहां सुख और दुख विदा हो जाते हैं वहां जो शेष रह जाता है, उसका नाम ही आनंद है।

पुतलीमहल या गुलाबकुंवारी-रामलाल वर्म्मा

  पुतलीमहल या गुलाबकुंवारी-रामलाल वर्म्मा  

वन देवी-बालदत्त पांडेय

वन देवी-बालदत्त पांडेय
वन देवी-बालदत्त पांडेय

Saturday, 9 September 2017

छत्रसाल- एक ऐतिहासिक उपन्यास -बालचंदनानचंद शाह

बुंदेलखंड में कई प्रतापी शासक हुए हैं। बुंदेला राज्‍य की आधारि‍शला रखने वाले चंपतराय के पुत्र छत्रसाल महान शूरवीर और प्रतापी राजा थे। छत्रसाल का जीवन मुगलों की सत्ता के खि‍लाफ संघर्ष और बुंदेलखंड की स्‍वतंत्रता स्‍थापि‍त करने के लि‍ए जूझते हुए नि‍कला। महाराजा छत्रसाल अपने जीवन के अंतिम समय तक आक्रमणों से जूझते रहे। बुंदेलखंड केशरी के नाम से वि‍ख्‍यात महाराजा छत्रसाल के बारे में ये पंक्तियां बहुत प्रभावशाली है:
इत यमुना, उत नर्मदा, इत चंबल, उत टोंस।
छत्रसाल सों लरन की, रही न काहू हौंस॥

यह  एक ऐतिहासिक उपन्यास है जो बुंदेलखंड के परतपी शशक के जीवन पर आधारित है । 
छत्रसाल-बालचंदनानचंद शाह
छत्रसाल-बालचंदनानचंद शाह

मानव की कहानी : राहुल सांकृत्यायन

राहुल संकृतायन जी द्वारा यह रचना उपन्यास की तरह किया गया है जो मानव के विकाश की कहानी के बारे मे बताता है । 

मानव की कहानी : राहुल सांकृत्यायन

मानव की कहानी : राहुल सांकृत्यायन


The Adventure of Physics – Vol-1 Fall, Flow and Heat

Monday, 4 September 2017

ओथेलो – विलियम शेक्सपियर

विश्व साहित्य के गौरव, अंग्रेज़ी भाषा के अद्वितीय नाटककार शेक्सपियर का जन्म 26 अप्रैल, 1564 ई. को इंग्लैंड के स्ट्रैटफोर्ड-ऑन-एवोन नामक स्थान में हुआ। उनके पिता एक किसान थे और उन्होंने कोई बहुत उच्च शिक्षा भी प्राप्त नहीं की। इसके अतिरिक्त शेक्सपियर के बचपन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। 1582 ई. में उनका विवाह अपने से आठ वर्ष बड़ी ऐन से हैथवे से हुआ। 1587 में शेक्सपियर लंदन की एक नाटक कम्पनी में काम करने लगे। वहाँ उन्होंने अनेक नाटक लिखे जिनसे उन्होंने धन और यश दोनों कमाए। 1616 ई में उनका स्वर्गवास हुआ। 
ऑथेलो’ एक दुःखान्त नाटक है। शेक्सपियर ने इसे सन् 1601 से 1608 के बीच लिखा था। यह समय शेक्सपियर के नाट्य-साहित्य के निर्माण-काल में तीसरा काल माना जाता है जबकि उसके अपने प्रसिद्ध दुःखान्त नाटक लिखे थे। इस काल के नाटक प्रायः निराशा से भरे हैं। ‘ऑथेलो’ की कथा सम्भवतः शेक्सपियर से पहले भी प्रचलित थी। दरबारी नाटक-मण्डली ने राजा जेम्स प्रथम के समय में पहली नवम्बर 1604 ई. को सभा में ‘वेनिस का मूर’ नामक नाटक खेला था। शेक्सपियर ने भी ‘ऑथेलो’ नाटक का दूसरा नाम-‘वेनिस का मूर’ ही रखा है। सम्भवतः यह शेक्सपियर का ही नाटक रहा हो। कथा का मूल स्रोत सम्भवतः 1566 ई. में प्रकाशित जिराल्डी चिन्थियो की ‘हिकैतोमिथी’ पुस्तक से लिखा गया है। अंग्रेज़ी साहित्य में इस कथा का शेक्सपियर के अतिरिक्त कहीं विवरण प्राप्त नहीं होता। शेक्सपियर की कथा और चिन्थिओ की कथा में काफी अन्तर है............

ओथेलो – विलियम शेक्सपियर ओथेलो – विलियम शेक्सपियर