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Saturday, 28 October 2017

चंद्रगुप्त विक्रमादित्य- गंगा प्रसाद मेहता


चन्द्रगुप्त द्वितीय महान जिनको संस्कृत में विक्रमादित्य या चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नाम से जाना जाता है; गुप्त वंश के एक महान शक्तिशाली सम्राट थे। उनका राज्य 375-413/15 ई तक चला जिसमें गुप्त राजवंश ने अपना शिखर प्राप्त किया। गुप्त साम्राज्य का वह समय भारत का स्वर्णिम युग भी कहा जाता है। चन्द्रगुप्त द्वितीय महान अपने पूर्व राजा समुद्रगुप्त महान के पुत्र थे। उसने आक्रामक विस्तार की नीति एवं लाभदयक पारिग्रहण नीति का अनुसार करके सफलता प्राप्त की।

चंद्रगुप्त विक्रमादित्य- गंगा प्रसाद मेहता
चंद्रगुप्त विक्रमादित्य- गंगा प्रसाद मेहता

भारत का संविधान-सिद्धांत और व्यवहार

Wednesday, 25 October 2017

संक्षिप्त महाभारत

महाभारत प्राचीन भारत का सबसे बड़ा महाकाव्य है।ये एक धार्मिक ग्रन्थ भी है। इसमें उस समय का इतिहास लगभग १,११,००० श्लोकों में लिखा हुआ है।
पुराणो के अनुसार ब्रह्मा जी से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध और बुध से इलानन्दन पुरूरवा का जन्म हुआ। पुरूरवा से आयु, आयु से राजा नहुष और नहुष से ययाति उत्पन्न हुए। ययाति से पुरू हुए। पूरू के वंश में भरत और भरत के कुल में राजा कुरु हुए। कुरु के वंश में शान्तनु का जन्म हुआ। शान्तनु से गंगानन्दन भीष्म उत्पन्न हुए। उनके दो छोटे भाई और थे - चित्रांगद और विचित्रवीर्य। ये शान्तनु से सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। शान्तनु के स्वर्गलोक चले जाने पर भीष्म ने अविवाहित रह कर अपने भाई विचित्रवीर्य के राज्य का पालन किया। चित्रांगद बाल्यावस्था में ही चित्रांगद नाम वाले गन्धर्व के द्वारा मारे गये। फिर भीष्म संग्राम में विपक्षी को परास्त करके काशिराज की दो कन्याओं - अंबिका और अंबालिका को हर लाये। वे दोनों विचित्रवीर्य की भार्याएँ हुईं। कुछ काल के बाद राजा विचित्रवीर्य राजयक्ष्मा से ग्रस्त हो स्वर्गवासी हो गये। तब सत्यवती की अनुमति से व्यासजी के द्वारा अम्बिका के गर्भ से राजा धृतराष्ट्र और अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु उत्पन्न हुए। धृतराष्ट्र ने गान्धारी के गर्भ से सौ पुत्रों को जन्म दिया, जिनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था और पाण्डु के युधिष्टर,भीम,अर्जुन,नकुल,सहदेव आदि पांच पुत्र हुए।

Tuesday, 24 October 2017

शून्य समाधि-ओशो

समाधि जैसे दीपक की लौजैसे नागिन का फन। समाधि जैसे चटके कलीजैसे लहके चमन। समाधि जैसे उमड़े घटाजैसे फूटे किरन। गत्यात्मकताऊर्जाप्रवाहजीवंतता। परमात्मा कोई ठहरी हुई चीज नहीं। परमात्मा .शाश्वत प्रवाह है। इसीलिए तो परमात्मा जीवन है। परमात्मा पत्थर नहीं हैपरमात्मा फूल है। समाधि को जानो तो ही जान पाओगे।

 मैं राजी तुम्हें समाधि में ले चलने को हूँतुम बाहर बाहर से मत पूछो। मैं कुछ कहूँगातुम कुछ समझोगे। तुम बाहर बाहर से पूछोगे तो चूकोगे। आओभीतर आओ,द्वार खुले हैंदस्तक भी देने की कोई जरूरत नहीं हैआओभीतर आओ। और अगर तुम जरा हिम्मत करो इस देहली के पार होने कीतो तुम जान लोगे समाधि क्या है। समाधि स्वयं का मिट जाना और परमात्मा का आविर्भाव है। समाधि समाधान है। इसलिए समाधि कहते हैं उसे। सारी समस्याओं का समाधान। फिर कोई समस्या न रही,कोई प्रश्न न रहाकोई चिंता न रहीसब शांत हो गयासब प्रश्न गिर गयेसब समस्याएँ तिरोहित हो गयींएक शून्य रह गया। लेकिन उसी शून्य में पूर्ण उतरता है। तुम शून्य बनोपूर्ण उतरने को तत्पर बैठा है। तुम्हारी तरफ से समाधि शून्य है,परमात्मा की तरफ से समाधि पूर्ण है।

लेकिन एक बात स्मरण रखना सदाजो भी समाधि के संबंध में कहा जाए मै भी जो कह रहा हूँवह भी सम्मिलित है वह सभी कामचलाऊ है। पूछा है तो कह रहा हूँ। पूछा है तो कहना पड़ता है। लेकिन जो हैकहने में नहीं आता है। जो हूऐवह जानने में आता हैअनुभव में आता है। मैं कुछ कहूँगाशब्दों का उपयोग करना पड़ेगा। शब्द में लाते ही वह जो विराट आकाश था समाधि कासिकुड़ कर बहुत छोटा हो गया। और यह बड़ी असंभव बात है।

एक छोटा बच्चा किताब पढ़ रहा था। इतिहास की किताब और उसने पढ़ा नेपोलियन का यह प्रसिद्ध वचन कि संसार में असंभव कुछ भी नहींवह खिल खिला कर हँसने लगा। उसके बाप ने पूछा क्या बात हैतू किताब पढ़ रहा है कि हँस रहा हैउसनेकहा मैं इसलिए हँस रहा हूँ कि यह इसमें लिखा है संसार में असंभव कोई बात नहीं। पिता ने भी कहा ठीक ही कहा हैसंसार में असंभव कोई बात नहीं है। लड़के ने कहा फिर रुको,मैने आज ही सुबह एक काम करके देखा है जो बिल्कुल असंभव है। बाप ने कहा: कौन सा कामउसने कहा मैं लाता हूँ अभी। वह भागास्नानगृह से जाकर टूथपेस्ट उठा लाया और उसने कहा  इसमें से पहले टूथपेस्ट निकालोफिर भीतर करोयह असंभव है नेपोलियन के जमाने में टूथपेस्ट नहीं होता होगा। इसलिए मुझे हँसी आ गयीक्योंकि सुबह ही मैंने बहुत कोशिश कीलाख कोशिश की मगर फिर भीतर नहीं जाता।

समाधि का अर्थ है पहले मन से बाहर आओटूथपेस्ट निकाल लिया। अब समाधि के संबंध में बताने का मतलब है टूथपेस्ट को फिर भीतर करोफिर शब्दों में लौटोअसंभव है। शायद टूथपेस्ट तो किसी तरह से आ भी जाएकोई उपाय बनाए जा सकते हैं,लेकिन शब्द के बाहर जाकर समाधि का अनुभव होता हैफिर शब्द के भीतर: उसको लाना असंभव है। इशारे हो सकते हैं। वही इशारे मैंने किये। 

संतो मगन भया मन मेरा 

ओशो 

Sunday, 15 October 2017

देवी सीता-जहुरबकश


सीता रामायण और रामकथा पर आधारित अन्य रामायण ग्रंथ, जैसे रामचरितमानस, की मुख्य पात्र है। सीता मिथिला के राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थी। इनका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र राम से स्वयंवर में शिवधनुष को भंग करने के उपरांत हुआ था। इनकी स्त्री व पतिव्रता धर्म के कारण इनका नाम आदर से लिया जाता है| त्रेतायुग में इन्हे सौभाग्य की देवी लक्ष्मी का अवतार मानते है।
देवी सीता-जहुरबक्स
देवी सीता-जहुरबक्स

कबाड़ से कमाल-अरविंद गुप्ता

Tuesday, 3 October 2017

आदि गुरु शंकराचार्य-ईंद्रा स्वपन

आदि गुरु शंकराचार्य-ईंद्रा स्वपन
आदि गुरु शंकराचार्य-ईंद्रा स्वपन
शिवावतार श्रीमज्जगदगुरु आदि शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के प्रणेता थे। उनके विचारोपदेश आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर आधारित हैं जिसके अनुसार परमात्मा एक ही समय में सगुण और निर्गुण दोनों ही स्वरूपों में रहता है। स्मार्त संप्रदाय में आदि शंकराचार्य को शिव का अवतार माना जाता है। इन्होंने ईशकेनकठप्रश्नमुण्डकमांडूक्यऐतरेय, तैत्तिरीय, बृहदारण्यक और छान्दोग्योपनिषद् पर भाष्य लिखा। वेदों में लिखे ज्ञान को एकमात्र ईश्वर को संबोधित समझा और उसका प्रचार तथा वार्ता पूरे भारत में की। उस समय वेदों की समझ के बारे में मतभेद होने पर उत्पन्न चार्वाक, जैन और बौद्धमतों को शास्त्रार्थों द्वारा खण्डित किया और भारत में चार कोनों पर ज्योति, गोवर्धन, श्रृंगेरी एवं द्वारिका आदि चार मठों की स्थापना की।
कलियुग के प्रथम चरण में विलुप्त तथा विकृत वैदिक ज्ञानविज्ञान को उद्भासित और विशुद्ध कर वैदिक वांगमय को दार्शनिक ,व्यावहारिक , वैज्ञानिक धरातल पर समृद्ध करने वाले एवं राजर्षि सुधन्वा को सार्वभौम सम्राट ख्यापित करने वाले चतुराम्नाय-चतुष्पीठ संस्थापक नित्य तथा नैमित्तिक युग्मावतार श्रीशिवस्वरुप भगवत्पाद शंकराचार्य की अमोघदृष्टि तथा अद्भुत कृति सर्वथा स्तुत्य है ।

मेरी जीवन यात्रा : राहुल सांकृत्यायन

मेरी जीवन-यात्रा-राहुल सांकृत्यायन
मेरी जीवन-यात्रा-राहुल सांकृत्यायन


राहुल सांकृत्यायन-हिन्दी में आत्मकथा-साहित्य के क्षेत्र में राहुल जी की 'मेरी जीवन-यात्रा’ एक अविस्मरणीय कृति है। राहुल जी ने अपनी जीवन-यात्रा में, जन्म से लेकर तिरसठवाँ वर्ष पूरा करने तक का वर्णन किया है। उन्होंने आत्मचरित के लिए 'जीवन-यात्रा’ शब्द का प्रयोग किया है। इस विषय में उनका कथन है, ''मैंने अपनी जीवनी न लिखकर 'जीवन-यात्रा’ लिखी है, यह क्यों? अपनी लेखनी द्वारा मैंने उस जगत की भिन्न-भिन्न गतियों और विचित्रताओं को अंकित करने की कोशिश की है, जिसका अनुमान हमारी तीसरी पीढ़ी मुश्किल से करेगी।’’ '