हिंदी में अगर साहित्य की लोकप्रिय किताबों की बात की जाए तो धर्मवीर भारती का उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ शीर्ष दस पुस्तकों में होगा। भारत की विभिन्न भाषाओं में इसके सौ के क़रीब संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं और युवा वर्ग में आज भी यह ख़ासी लोकप्रिय किताब है। इस लोकप्रियता का कारण अगर इसकी बेहद रोमांटिक प्रेम कहानी है तो इसके बरक्स प्रेम का एक उदात्त और बलिदानी स्वरूप भी है। इस उपन्यास की जितनी लोकप्रियता है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि हिंदी में इससे ज्यादा लोकप्रिय उपन्यास की चर्चा करेंगे तो एक के बाद एक कई नाम आते चले जाएंगे और बावजूद इसके ‘गुनाहों का देवता’ की पसंदगी अपनी जगह कायम रहेगी। इस पसंदगी के कारण जुदा हो सकते है, लेकिन बहुत से ऐसे लोग भी मिल जाएंगे जो एक ख़ास वक्त में इसे पसंद करते थे, लेकिन अब यह उन्हें नहीं रूचता। खुद धर्मवीर भारती ही इस बात को कभी नहीं समझ पाए कि इसकी अपार लोकप्रियता के पीछे क्या कारण रहे।
जब यह उपन्यास प्रकाशित हुआ तब पूरे देश में आदर्शवाद की जबर्दस्त धूम थी। छठे दशक की किसी भी कला संस्कृति की विधा को ले लीजिए हर तरफ आदर्शवाद ही दिखाई देता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के लगभग तुरंत बाद के इस परिदृश्य में एक अजीब किस्म का जोश और जुनून था जिसमें बहुत कम लोग थे जो अंग्रेजों से मुक्ति के मोहभंग को यथार्थ में चित्रित कर रहे थे। नेहरूयुगीन आशावाद का एक जोम था, जिसमें पूरा देश बह रहा था। धर्मवीर भारती भी उस परिदृश्य के ही एक पात्र और कलाकार थे। वे उससे अलग कैसे रह सकते थे? आजादी के बाद के इस कालखण्ड में जो महत्वपूर्ण किताबें सामने आईं उनमें से अधिकांश में आत्मबलिदान को लेकर एक विचित्र किस्म का व्यामोह था। हर कोई कुरबान होना चाहता था, लेकिन किसी को पता नहीं था कि किस पर कुर्बान होना है। कोई अपनी कला पर कुर्बान था तो कोई अपनी प्रेमिका पर और बाकी सब किसी ना किसी मकसद को लेकर। बलिदानी होने की कामना कोई बुरी बात नहीं, लेकिन दिक्कत तब होती है जब आपके सामने कोई ठोस आदर्श नहीं हो। यह उपन्यास उसी दौर की कथा है जिसमें आदर्श का कोई एक स्वरूप नहीं था और सच्चाई यह भी है कि यथार्थ में आदर्श का कोई एक मानक और ठोस रूप हो भी नहीं सकता। और प्रेम में तो आदर्श वक्त के साथ बहुत तेजी से बदलते रहते हैं। इसलिए भारती जी के युवावस्था में लिखे इस उपन्यास में एक यूटोपियाई प्रेम है। दो युवा दिलों के बीच पनपने वाला अव्यक्त किस्म का प्रेम, जिसे दोनों जानते तो हैं, पर अनजान भी बने रहते हैं और एक दूसरे को बस किसी प्रकार सुखी देखना चाहते हैं। जिसे अंग्रेजी में प्लेटोनिक लव कहते हैं, जिसमें दैहिक संबंध के बिना अपने प्रेम का चरम रूप दो प्रेमी दिखाना चाहते हैं। चंदर और सुधा ऐसे ही प्रेमी हैं।
DOWNLOAD- गुनाहो के देवता-धर्मवीर भारती
1 comment: