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Monday, 9 January 2017

सहयाद्रि की चट्टानें

आचार्य चतुरसेन शास्त्री का जन्म 26 अगस्त1891 को चांदोख ज़िला बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में इनकी प्रतिष्ठा है। चतुरसेन शास्त्री की यह विशेषता है कि उन्होंने उपन्यासों के अलावा और भी बहुत कुछ लिखा है, कहानियाँ लिखी हैं, जिनकी संख्या प्राय: साढ़े चार सौ है। गद्य-काव्य, धर्म, राजनीति, इतिहास, समाजशास्त्र के साथ-साथ स्वास्थ्य एवं चिकित्सा पर भी उन्होंने अधिकारपूर्वक लिखा है।
द्विवेदी युग में देवकीनन्दन खत्री, गोपालराम गहमरी, किशोरीलाल गोस्वामी आदि रचनाकारों ने तिलस्मी एवं जासूसी उपन्यास लिखे जो कि उन दिनों अत्यन्त लोकप्रिय हुए। देवकीनन्दन खत्री जी की “चन्द्रकान्ता” उपन्यास तो लोगों को इतनी भायी कि लाखो लोगों ने उसे पढ़ने के लिए हिन्दी सीखा। तिलस्मी और जासूसी उपन्यासों के लेखकों के अतिरिक्त प्रेमचन्दवृंदावनलाल वर्मा, आचार्य चतुरसेन शास्त्री, विश्वम्भर नाथ कौशिक, चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’, सुदर्शन, जयशंकर ‘प्रसाद’ आदि द्विवेदी युग के साहित्यकार रहे।[1]
सन 1943-44 के आसपास जब हम लोग दिल्ली आए तो देश की राजधानी कहलाने वाली दिल्ली में हिन्दी भाषा और साहित्य का कोई विशेष प्रभाव नहीं था। यदाकदा धार्मिक अवसरों पर कवि-गोष्ठियां हो जाया करती थीं। एकाध बार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का अधिवेशन भी हुआ था। लेकिन उस समय आचार्य चतुरसेन शास्त्री और जैनेन्द्रकुमार के अतिरिक्त कोई बड़ा साहित्यकार दिल्ली में नहीं था। बाद में सर्वश्री गोपालप्रसाद व्यास, नगेन्द्र, विजयेन्द्र स्नातक आदि यहां आए।[2]

रचनायें

मेरठ क्षेत्र की सुदीर्घ साहित्यिक परंपरा रही है। यहां के साहित्यकारों ने हिन्दी साहित्य में न केवल इस क्षेत्र के जनजीवन के सांस्कृतिक पक्ष को अभिव्यक्त किया, बल्कि इस अंचल की भाषिक संवेदना को भी पहचान दी। इन साहित्यकारों के बिना हिन्दी साहित्य का इतिहास पूरा नहीं हो सकता। 26 अगस्त, 1891 को बुलंदशहर के चंदोक में जन्मे आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने 32 उपन्यास, 450 कहानियां और अनेक नाटकों का सृजन कर हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया। ऐतिहासिक उपन्यासों के माध्यम से उन्होंने कई अविस्मरणीय चरित्र हिन्दी साहित्य को प्रदान किए। सोमनाथ, वयं रक्षाम:, वैशाली की नगरवधू, अपराजिता, केसरी सिंह की रिहाई, धर्मपुत्र, खग्रास, पत्थर युग के दो बुत, बगुला के पंख उनके महत्त्वपूर्ण उपन्यास हैं। चार खंडों में लिखे गए सोना और ख़ून के दूसरे भाग में 1857 की क्रांति के दौरान मेरठ अंचल में लोगों की शहादत का मार्मिक वर्णन किया गया है। गोली उपन्यास में राजस्थान के राजा-महाराजाओं और दासियों के संबंधों को उकेरते हुए समकालीन समाज को रेखांकित किया गया है। अपनी समर्थ भाषा शैली के चलते शास्त्रीजी ने अद्भुत लोकप्रियता हासिल की और वह जन साहित्यकार बने।[3]
इनकी प्रकाशित रचनाओं की संख्या 186 है, जो अपने ही में एक कीर्तिमान है। आचार्य चतुरसेन मुख्यत: अपने उपन्यासों के लिए चर्चित रहे हैं। इनके प्रमुख उपन्यासों के नाम हैं-
  1. वैशाली की नगरवधू
  2. वयं रक्षाम
  3. सोमनाथ
  4. मन्दिर की नर्तकी
  5. रक्त की प्यास
  6. सोना और ख़ून (चार भागों में)
  7. आलमगीर
  8. सह्यद्रि की चट्टानें
  9. अमर सिंह
  10. ह्रदय की परख


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1 comment:

  1. Bahut bahut dhanyawad...keep uploading..:-)

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