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Wednesday, 22 February 2017

झाँसी की रानी -शुभद्र कुमारी चौहान

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


2 comments:

  1. Waah...bachpan me padhi thi ye kavita...school days yaad aa gya...thanks Raviji

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    1. Thank u Rani ji ..............mere pdhai me v tha,............ek utejak aur achi kabita hai............shubhadra ji ka

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