Pages

Saturday, 24 September 2016

दुर्गेश नंदनी

हमारे साइट के visiter रानी जी के मांग पर -हिन्दी अनुवादित।
दुर्गेशनन्दिनी (शाब्दिक अर्थ : दुर्ग के अस्वामी की बेटीबंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित प्रथम बांग्ला उपन्यास था। सन १८६५ के मार्च मास में यह उपन्यास प्रकाशित हुआ। दुर्गेशनन्दिनी बंकिमचन्द्र की चौबीस से लेकर २६ वर्ष के आयु में लिखित उपन्यास है। इस उपन्यास के प्रकाशित होने के बाद बांग्ला कथासाहित्य की धारा एक नये युग में प्रवेश कर गयी। १६वीं शताब्दी के उड़ीसा को केन्द्र में रखकर मुगलों और पठानों के आपसी संघर्ष की पृष्ट में यह उपन्यास रचित है। फिर भी इसे सम्पूर्ण रूप से एक ऐतिहासिक उपन्यास नहीं माना जाता।

DOWNLOAD- दुर्गेश नंदनी Part-1
                          दुर्गेश नंदनी  Part-2

Friday, 23 September 2016

विष्णु पुराण



इस पुराण के रचनाकार पराशर ऋषि थे। ये महर्षि वसिष्ठ के पौत्र थे। इस पुराण में पृथु, ध्रुव और प्रह्लाद के प्रसंग अत्यन्त रोचक हैं। 'पृथु' के वर्णन में धरती को समतल करके कृषि कर्म करने की प्रेरणा दी गई है। कृषि-व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त करने पर ज़ोर दिया गया है। घर-परिवार, ग्राम, नगर, दुर्ग आदि की नींव डालकर परिवारों को सुरक्षा प्रदान करने की बात कही गई है। इसी कारण धरती को 'पृथ्वी' नाम दिया गया । 'ध्रुव' के आख्यान में सांसारिक सुख, ऐश्वर्य, धन-सम्पत्ति आदि को क्षण भंगुर अर्थात् नाशवान समझकर आत्मिक उत्कर्ष की प्रेरणा दी गई है। प्रह्लाद के प्रकरण में परोपकार तथा संकट के समय भी सिद्धांतों और आदर्शों को न त्यागने की बात कही गई है।

इस पुराण में स्त्रियों, साधुओं और शूद्रों को श्रेष्ठ माना गया है

इस पुराण में प्राचीन काल के राजवंशों का वृत्तान्त लिखते हुए कलियुगी राजाओं को चेतावनी दी गई है कि सदाचार से ही प्रजा का मन जीता जा सकता है, पापमय आचरण से नहीं। जो सदा सत्य का पालन करता है, सबके प्रति मैत्री भाव रखता है और दुख-सुख में सहायक होता है; वही राजा श्रेष्ठ होता है। राजा का धर्म प्रजा का हित संधान और रक्षा करना होता है। जो राजा अपने स्वार्थ में डूबकर प्रजा की उपेक्षा करता है और सदा भोग-विलास में डूबा रहता है, उसका विनाश समय से पूर्व ही हो जाता है।
  • भारतवर्ष को कर्मभूमि कहकर उसकी महिमा का सुंदर बखान करते हुए पुराणकार कहता है-
इत: स्वर्गश्च मोक्षश्च मध्यं चान्तश्च गम्यते।
न खल्वन्यत्र मर्त्यानां कर्मभूमौ विधीयते ॥[2]
अर्थात यहीं से स्वर्ग, मोक्ष, अन्तरिक्ष अथवा पाताल लोक पाया जा सकता है। इस देश के अतिरिक्त किसी अन्य भूमि पर मनुष्यों पर मनुष्यों के लिए कर्म का कोई विधान नहीं है।
  • इस कर्मभूमि की भौगोलिक रचना के विषय में कहा गया है-
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् । वर्ष तद्भारतं नाम भारती यत्र संतति ॥[3]
अर्थात समुद्र कें उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो पवित्र भूभाग स्थित है, उसका नाम भारतवर्ष है। उसकी संतति 'भारतीय' कहलाती है।
  • इस भारत भूमि की वन्दना के लिए विष्णु पुराण का यह पद विख्यात है-
गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारत भूमिभागे।
स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूय: पुरुषा: सुरत्वात्।
कर्माण्ड संकल्पित तवत्फलानि संन्यस्य विष्णौ परमात्मभूते।
अवाप्य तां कर्ममहीमनन्ते तस्मिंल्लयं ये त्वमला: प्रयान्ति ॥[4]
अर्थात देवगण निरन्तर यही गान करते हैं कि जिन्होंने स्वर्ग और मोक्ष के मार्ग् पर चलने के लिए भारतभूमि में जन्म लिया है, वे मनुष्य हम देवताओं की अपेक्षा अधिक धन्य तथा भाग्यशाली हैं। जो लोग इस कर्मभूमि में जन्म लेकर समस्त आकांक्षाओं से मुक्त अपने कर्म परमात्मा स्वरूप श्री विष्णु को अर्पण कर देते हैं, वे पाप रहित होकर निर्मल हृदय से उस अनन्त परमात्म शक्ति में लीन हो जाते हैं। ऐसे लोग धन्य होते हैं।
  • 'विष्णु पुराण' में कलि युग में भी सदाचरण पर बल दिया गया है। इसका आकार छोटा अवश्य है, परंतु मानवीय हित की दृष्टि से यह पुराण अत्यन्त लोकप्रिय और महत्त्वपूर्ण है।


DOWNLOAD- विष्णु पुराण

Tuesday, 20 September 2016

देवी चौधरानी-बंकिमचन्द्र


हमारे साइट के visiter रानी जी के मांग।


बंकिम के दूसरे उपन्यास 'कपाल कुण्डली', 'मृणालिनी', 'विषवृक्ष', 'कृष्णकांत का वसीयत नामा', 'रजनी', 'चन्द्रशेखर' आदि प्रकाशित हुए। राष्ट्रीय दृष्टि से 'आनंदमठ' उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। इसी में सर्वप्रथम 'वन्दे मातरम्' गीत प्रकाशित हुआ था। ऐतिहासिक और सामाजिक तानेबाने से बुने हुए इस उपन्यास ने देश में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने में बहुत योगदान दिया। लोगों ने यह समझ लिया कि विदेशी शासन से छुटकारा पाने की भावना अंग्रेज़ी भाषा या यूरोप का इतिहास पढ़ने से ही जागी। इसका प्रमुख कारण था अंग्रेज़ों द्वारा भारतीयों का अपमान और उन पर तरह-तरह के अत्याचार। बंकिम के दिए ‘वन्दे मातरम्’ मंत्र ने देश के सम्पूर्ण स्वतंत्रता संग्राम को नई चेतना से भर दिया। ok
देवी चौधरानी' उनका एक अन्य उपन्यास और 'कमलाकान्त का रोजनामचा' गम्भीर निबन्धों का संग्रह है। एक ओर विदेशी सरकार की सेवा और दूसरी ओर देश के नवजागरण के लिए उच्चकोटि के साहित्य की रचना करना यह काम बंकिम के लिए ही सम्भव था।

DOWNLOAD- देवी चौधरानी-बंकिमचन्द्र

Saturday, 17 September 2016

योगिराज कृष्ण-लाला लाजपत राय

स्वतन्त्रता सेनानी लाला लाजपत राय ( जन्म: 28 जनवरी 1865 - मृत्यु: 17 नवम्बर 1928)का साहित्य मे भी योगदान सरहनीय है । इनके द्वारा किए गए कई रचनाओ मे "योगिराज कृष्ण " भी एक परषिद्ध और पठ्णिया रचना है । यह रचना श्रीकृष्न का एक नए रूप को हमारे सामने लता है.....
डाउनलोड -योगिराज कृष्ण

स्त्री और पुरुष-लियो टॉलस्टाय

 लियो टॉलस्टाय की बूक the relation of the sexes का हिन्दी रूपान्तरण-
L.N.Tolstoy Prokudin-Gorsky.jpg
लियो टॉलस्टाय (रूसी:Лев Никола́евич Толсто́й, 9 सितम्बर 1828 - 20 नवंबर 1910) उन्नीसवीं सदी के सर्वाधिक सम्मानित लेखकों में से एक हैं। उनका जन्म रूस के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उन्होंने रूसी सेना में भर्ती होकर क्रीमियाई युद्ध (1855) में भाग लिया, लेकिन अगले ही वर्ष सेना छोड़ दी। लेखन के प्रति उनकी रुचि सेना में भर्ती होने से पहले ही जाग चुकी थी। उनके उपन्यास युद्ध और शान्ति (1865-69) तथा आन्ना करेनिना (1875-77) साहित्यिक जगत में क्लासिक रचनाएँ मानी जाती है।
धन-दौलत व साहित्यिक प्रतिभा के बावजूद तालस्तोय मन की शांति के लिए तरसते रहे। अंततः 1890 में उन्होंने अपनी धन-संपत्ति त्याग दी। अपने परिवार को छोड़कर वे ईश्वर व गरीबों की सेवा करने हेतु निकल पड़े। उनके स्वास्थ्य ने अधिक दिनों तक उनका साथ नहीं दिया। आखिरकार 20 नवम्बर 1910 को अस्तापवा नामक एक छोटे से रेलवे स्टेशन पर इस धनिक पुत्र ने एक गरीब, निराश्रित, बीमार वृद्ध के रूप में मौत का आलिंगन कर लिया।


DOWNLOAD-स्त्री और पुरुष-लियो टॉलस्टाय

The Art of Writing and Speaking the English Language

 
The classic manual on writing and speaking - learn how to communicate clearly and effectively and discover how you may be holding yourself back.


DOWNLOAD-The Art of Writing and Speaking the English Language

 For Hard Copy-Link

Tuesday, 13 September 2016

अग्निपुराण



अग्निपुराण पुराण साहित्य में अपनी व्यापक दृष्टि तथा विशाल ज्ञान भंडार के कारण विशिष्ट स्थान रखता है। विषय की विविधता एवं लोकोपयोगिता की दृष्टि से इस पुराण का विशेष महत्त्व है। अनेक विद्वानों ने विषयवस्‍तु के आधार पर इसे 'भारतीय संस्‍कृति का विश्‍वकोश' कहा है। अग्निपुराण में त्रिदेवों – ब्रह्माविष्‍णु एवं शिव तथासूर्य की पूजा-उपासना का वर्णन किया गया है। इसमें परा-अपरा विद्याओं का वर्णन, महाभारत के सभी पर्वों की संक्षिप्त कथा, रामायण की संक्षिप्त कथा, मत्स्य, कूर्म आदि अवतारों की कथाएँ, सृष्टि-वर्णन, दीक्षा-विधि, वास्तु-पूजा, विभिन्न देवताओं के मन्त्र आदि अनेक उपयोगी विषयों का अत्यन्त सुन्दर प्रतिपादन किया गया है।

इस पुराण के वक्‍ता भगवान अग्निदेव हैं, अतः यह 'अग्निपुराण' कहलाता है। अत्‍यंत लघु आकार होने पर भी इस पुराण में सभी विद्याओं का समावेश किया गया है। इस दृष्टि से अन्‍य पुराणों की अपेक्षा यह और भी विशिष्‍ट तथा महत्‍वपूर्ण हो जाता है।

पद्म पुराण में भगवान् विष्‍णु के पुराणमय स्‍वरूप का वर्णन किया गया है और अठारह पुराण भगवान के 18 अंग कहे गए हैं। उसी पुराणमय वर्णन के अनुसार ‘अग्नि पुराण’ को भगवान विष्‍णु का बायां चरण कहा गया है।


आधुनिक उपलब्ध अग्निपुराण के कई संस्करणों में ११,४७५ श्लोक है एवं ३८३ अध्याय हैं, परन्तु नारदपुराण के अनुसार इसमें १५ हजार श्लोकों तथा मत्स्यपुराण के अनुसार १६ हजार श्लोकों का संग्रह बतलाया गया है। बल्लाल सेन द्वारा दानसागर में इस पुराण के दिए गए उद्धरण प्रकाशित प्रतियों में उपलब्ध नहीं है। इस कारण इसके कुछ अंशों के लुप्त और अप्राप्त होने की बात अनुमानतः सिद्ध मानी जा सकती है।

अग्निपुराण में पुराणों के पांचों लक्षणों अथवा वर्ण्य-विषयों-सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित का वर्णन है। सभी विषयों का सानुपातिक उल्लेख किया गया है।



पुराण साहित्य में अग्निपुराण अपनी व्यापक दृष्टि तथा विशाल ज्ञान भंडार के कारण विशिष्ट स्थान रखता है। साधारण रीति से पुराण को 'पंचलक्षण' कहते हैं, क्योंकि इसमें सर्ग (सृष्टि), प्रतिसर्ग (संहार), वंश, मन्वंतर तथा वंशानुचरित का वर्णन अवश्यमेव रहता है, चाहे परिमाण में थोड़ा न्यून ही क्यों न हो। परंतु अग्निपुराण इसका अपवाद है। प्राचीन भारत की परा और अपरा विद्याओं का तथा नाना भौतिकशास्त्रों का इतना व्यवस्थित वर्णन यहाँ किया गया है कि इसे वर्तमान दृष्टि से हम एक विशाल विश्वकोश कह सकते हैं।आग्नेय हि पुराणेऽस्मिन् सर्वा विद्याः प्रदर्शिताः

यह अग्नि पुराण का कथन है जिसके अनुसार अग्नि पुराण में सभी विधाओं का वर्णन है। यह अग्निदेव के स्वयं के श्रीमुख से वर्णित है इसलिए यह प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण पुराण है। यह पुराण उन्होंने महर्षि वशिष्ठ को सुनाया था। यह पुराण दो भागों में हैं पहले भाग में ब्रह्म विद्या का सार है। इसको सुनने से देवगण ही नहीं समस्त प्राणी जगत् सुख प्राप्त करता है। विष्णु भगवान के अवतारों का वर्णन है। वेग के हाथ के मंथन से उत्पन्न पृथु का आख्यान है। दिव्य शक्तिमयी मरिषा की कथा है। कश्यप ने अपनी अनेक पत्नियों द्वारा परिवार विस्तार किया उसका वर्णन भी किया गया है।

भगवान् अग्निदेव ने देवालय निर्माण के फल के विषय में आख्यान दिए हैं और चौसठ योगनियों का सविस्तार वर्णन भी है। शिव पूजा का विधान भी बताया गया है। इसमें काल गणना के महत्त्व पर भी प्रकाश डाला गया है। साथ ही इसमें गणित के महत्त्व के साथ विशिष्ट राहू का वर्णन भी है। प्रतिपदा व्रत, शिखिव्रत आदि व्रतों के महत्त्व को भी दर्शाया गया है। साथ ही धीर नामक ब्राह्मण की एक कथा भी है। दशमी व्रत, एकादशी व्रत आदि के महत्त्व को भी बताया गया है।




विषय-सामग्री की दृष्टि से 'अग्नि पुराण' को भारतीय जीवन का विश्वकोश कहा जा सकता है पुराणों के पांचों लक्षणों- सर्ग, प्रतिसर्ग, राजवंश,मन्वन्तर और वंशानुचरित आदि का वर्णन भी इस पुराण में प्राप्त होता है। किन्तु इसे यहाँ संक्षेप रूप में दिया गया है। इस पुराण का शेष कलेवर दैनिक जीवन की उपयोगी शिक्षाओं से ओतप्रोत है।
'अग्नि पुराण' में शरीर और आत्मा के स्वरूप को अलग-अलग समझाया गया है। इन्द्रियों को यंत्र मात्र माना गया है और देह के अंगों को 'आत्मा' नहीं माना गया है। पुराणकार' आत्मा' को हृदय में स्थित मानता है। ब्रह्म से आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जलऔर जल से पृथ्वी होती है। इसके बाद सूक्ष्म शरीर और फिर स्थूल शरीर होता है।
'अग्नि पुराण' ज्ञान मार्ग को ही सत्य स्वीकार करता है। उसका कहना है कि ज्ञान से ही 'ब्रह्म की प्राप्ति सम्भव है, कर्मकाण्ड से नहीं। ब्रह्म की परम ज्योति है जो मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार से भिन्न है। जरा, मरण, शोक, मोह, भूख-प्यास तथा स्वप्न-सुषुप्ति आदि से रहित है।
इस पुराण में 'भगवान' का प्रयोग विष्णु के लिए किया गया है। क्योंकि उसमें 'भ' से भर्त्ता के गुण विद्यमान हैं और 'ग' से गमन अर्थात प्रगति अथवा सृजनकर्त्ता का बोध होता है। विष्णु को सृष्टि का पालनकर्त्ता और श्रीवृद्धि का देवता माना गया है। 'भग' का पूरा अर्थ ऐश्वर्य, श्री, वीर्य, शक्ति, ज्ञान, वैराग्य और यश होता है जो कि विष्णु में निहित है। 'वान' का प्रयोग प्रत्यय के रूप में हुआ है, जिसका अर्थ धारण करने वाला अथवा चलाने वाला होता है। अर्थात जो सृजनकर्ता पालन करता हो, श्रीवृद्धि करने वाला हो, यश और ऐश्वर्य देने वाला हो; वह 'भगवान' है। विष्णु में ये सभी गुण विद्यमान हैं।
'अग्नि पुराण' ने मन की गति को ब्रह्म में लीन होना ही 'योग' माना है। जीवन का अन्तिम लक्ष्य आत्मा और परमात्मा का संयोग ही होना चाहिए। इसी प्रकार वर्णाश्रम धर्म की व्याख्या भी इस पुराण में बहुत अच्छी तरह की गई है। ब्रह्मचारी को हिंसा और निन्दा से दूर रहना चाहिए। गृहस्थाश्रम के सहारे ही अन्य तीन आश्रम अपना जीवन-निर्वाह करते हैं। इसलिए गृहस्थाश्रम सभी आश्रमों में श्रेष्ठ है। वर्ण की दृष्टि से किसी के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए। वर्ण कर्म से बने हैं, जन्म से नहीं।




Download Link -आग्नि पुराण

आफत के पुतले -कॉमिक्स

भयंकर भूत

मैडम क्यूरी


मैरी स्क्लाडोवका क्यूरी (लघु नाम: मैरी क्यूरी) (७ नवम्बर १८६७ - ४ जुलाई १९३४) विख्यात भौतिकविद और रसायनशास्त्री थी। मेरी ने रेडियम की खोज की थी।[1]विज्ञान की दो शाखाओं (भौतिकी एवं रसायन विज्ञान) में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली वह पहली वैज्ञानिक हैं।[2] वैज्ञानिक मां की दोनों बेटियों ने भी नोबल पुरस्कार प्राप्त किया। बडी बेटी आइरीन को १९३५ में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ तो छोटी बेटी ईव को १९६५ में शांति के लिए नोबेल पुरस्कार मिला।


DOWNLOAD-मैडम क्यूरी

Monday, 12 September 2016

42. गीता हमे क्या सीखाती है।

गीता मे लिखे उपदेश किसी एक मनुष्य विशेष या किसी खास  धर्म के लिए नही है, इसके उपदेश तो पूरे जग के लिए है। जिसमे आध्यात्म और ईश्वर के  बीच जो गहरा संबंध है उसके बारे मे विस्तार से लिखा गया है। गीता मे धीरज, संतोष, शांति,  मोक्ष और सिद्धि को प्राप्त करने के बारे मे उपदेश दिया गया है। 

आज से हज़ारो साल पहले महाभारत के युद्ध मे जब अर्जुन अपने  ही भाईयों के विरुद्ध लड़ने के विचार से कांपने लगते हैं, तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का  उपदेश दिया था। कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि यह संसार एक बहुत बड़ी युद्ध भूमि है,  असली कुरुक्षेत्र तो तुम्हारे अंदर है। अज्ञानता या अविद्या धृतराष्ट्र है, और हर  एक आत्मा अर्जुन है। और तुम्हारे अन्तरात्मा मे श्री कृष्ण का निवास है, जो इस रथ  रुपी शरीर के सारथी है। ईंद्रियाँ इस रथ के घोड़ें हैं। अंहकार, लोभ, द्वेष ही  मनुष्य के शत्रु हैं। 

गीता हमे जीवन के शत्रुओ से लड़ना सीखाती है, और ईश्वर से  एक गहरा नाता जोड़ने मे भी मदद करती है। गीता त्याग, प्रेम और कर्तव्य का संदेश  देती है। गीता मे कर्म को बहुत महत्व दिया गया है। मोक्ष उसी मनुष्य को प्राप्त  होता है जो अपने सारे सांसारिक कामों को करता हुआ ईश्वर की आराधना करता है। अहंकार,  ईर्ष्या, लोभ आदि को त्याग कर मानवता को अपनाना ही गीता के उपदेशो का पालन करना  है।

गीता सिर्फ एक पुस्तक नही है, यह तो जीवन मृत्यु के  दुर्लभ सत्य को अपने मे समेटे हुए है। कृष्ण ने एक सच्चे मित्र और गुरु की तरह अर्जुन  का न सिर्फ मार्गदर्शन किया बल्कि गीता का महान उपदेश भी दिया। उन्होने अर्जुन को  बताया कि इस संसार मे हर मनुष्य के जन्म का कोई न कोई उद्देशय होता है। मृत्यु पर  शोक करना व्यर्थ है, यह तो एक अटल सत्य है जिसे टाला नही जा सकता। जो जन्म लेगा  उसकी मृत्यु भी निश्चित है। जिस प्रकार हम पुराने वस्त्रो को त्याग कर नए वस्त्रो  को धारण करते है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर के नष्ट होने पर नए शरीर को धारण  करती है। जिस मनुष्य ने गीता के सार को अपने जीवन मे अपना लिया उसे  ईश्वर की कृपा पाने के लिए इधर उधर नही भटकना पड़ेगा।

DOWNLOAD-गीता हमे क्या सीखाती है।

Saturday, 10 September 2016

41. लाला रुख-चतुरसेन शास्त्री

लाला रुख का मीनार
 आचार्य चतुरसेन शास्त्री हिन्दी भाषा के एक महान उपन्यासकार थे। इनका अधिकतर लेखन ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित है। इनकी प्रमुख कृतियां गोलीसोमनाथवयं रक्षाम: और वैशाली की नगरवधू इत्यादि हैं।
  यह किताब एक कहानी संग्रह है और इनकी 110 बी रचना है ----
लाला रुख ... मुगल सम्राट अकबर की बेटी थी -----

 DOWNLOAD -लाला रुख-चतुरसेन शास्त्री

Wednesday, 7 September 2016

40. महारानी पद्मिनी-एक ऐतिहासिक उपन्यास

रानी पद्मिनी
चित्तौड़ की रानी थी। रानी पद्मिनि के साहस और बलिदान की गौरवगाथा इतिहास में अमर है। सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की बेटी पद्मिनी चित्तौड़ के राजा रतनसिंह के साथ ब्याही गई थी। रानी पद्मिनी बहुत खूबसूरत थी और उनकी खूबसूरती पर एक दिन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की बुरी नजर पड़ गई।[1] अलाउद्दीन किसी भी कीमत पर रानी पद्मिनी को हासिल करना चाहता था, इसलिए उसने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। रानी पद्मिनी ने आग में कूदकर जान दे दी, लेकिन अपनी आन-बान पर आँच नहीं आने दी। ईस्वी सन् १३०३ में चित्तौड़ के लूटने वाला अलाउद्दीन खिलजी था जो राजसी सुंदरी रानी पद्मिनी को पाने के लिए लालयित था। श्रुति यह है कि उसने दर्पण में रानी की प्रतिबिंब देखा था और उसके सम्मोहित करने वाले सौंदर्य को देखकर अभिभूत हो गया था। लेकिन कुलीन रानी ने लज्जा को बचाने के लिए जौहर करना बेहतर समझा।[2]
इनकी कथा कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अवधी भाषा में पद्मावत ग्रंथ रूप में लिखी है।

Tuesday, 6 September 2016

39. अलिफ लैला की कहानियाँ-भाग 1


दोस्तो इस अपडेट मे अलिफ लैला की भाग एक की पूरी कहानियाँ है। इस पूरे भाग मे कुल 31 कहानिया है तथा इसी भाग मे सिंदवाद की 7 यात्राओ की कहानियाँ भी है।------.... अपडेट कैसा लगा ....अप्पना विचार जरूर 
दे...

.
आपने के किस्से सुने होंगे, अलीबाबा और चालीस चोर की कहानी से भी वाकिफ होंगे, अलादीन और जादुई चिराग के बारे में भी जानते होंगे, लेकिन क्या आपको मालूम है कि यह सब कहानियाँ कहाँ से आई हैं?

ये सारी कहानियाँ अरबी भाषा की महान दास्तान अल्फ लैला व लैला से ली गई हैं जिसे पश्चिमी दुनिया में 'अरेबियन नाइट्स' और भारत में हम 'दास्ताने अलिफ लैला' के नाम से जानते हैं।

अरबी में 'अल्फ' का मतलब हजार होता है और लैला का मतलब रात यानी इसमें एक हजार एक रात की कहानी है जो सारी दुनिया में बराबर लोकप्रिय है।

कहानी अपने आप में एक ऐसी घटना का नतीजा है जो जीवन के लिए संघर्ष को दर्शाता है। किसी जमाने में शहरयार नाम का एक बादशाह होता था जिसने अपनी पत्नी की बेवफाई के नतीजे में यह प्रण ले लिया था कि वह अपने राज्य की हर लड़की से शादी करेगा और दूसरे दिन उसे कत्ल कर देगा।

लोग उसका राज्य छोड़ कर भागने पर विवश हो जाते हैं फिर उसी के वज़ीर की बेटी शहरजाद एक योजना के तहत उससे शादी करती है।

उसकी बहन दुनियाजाद उसे आखिरी कहानी सुनाने के लिए कहती है कि कल तो उसका कत्ल हो जाएगा, बादशाह को भी कहानी सुनने की उत्सुकता होती है और वह इजाजत दे देता है, लेकिन शहरजाद कहानी कहना ऐसे समय में छोड़ देती है जब सबकी उत्सुक्ता अपने चरम पर होती है।

बादशाह कहानी का अंजाम सुनने के लिए उसकी मौत को एक दिन के लिए टाल देता है। फिर कहानी के अंदर से कहानी निकलती है और हर रात वह उसे ऐसी जगह छोड़ती है जिसे सुने बिना राजा को रहा नहीं जाता और वह उसकी मौत को टालता रहता है।

यहाँ तक की हजार रात तक कहानी चलती है और इस बीच शहरजाद को तीन बच्चे भी पैदा होते हैं और फिर अगली रात में वह कहानी खत्म करके अपनी तकदीर का फैसला बादशाह पर छोड़ देती है, और बादशाह को यह एहसास होता है कि सारी महिलाएँ एक सी नहीं होतीं-----





Download-अलिफ लैला की कहानियाँ-भाग 1

38. फ़ाहियान की यात्रा विवरण

फ़ाह्यान अथवा फ़ाहियान (अंग्रेज़ी:Faxian) का जन्म चीन के 'वु-वंग' नामक स्थान पर हुआ था। यह बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उसने लगभग 399 ई. में अपने कुछ मित्रों 'हुई-चिंग', 'ताओंचेंग', 'हुई-मिंग', 'हुईवेई' के साथ भारत यात्रा प्रारम्भ की। फ़ाह्यान की भारत यात्रा का उदेश्य बौद्ध हस्तलिपियों एवं बौद्ध स्मृतियों को खोजना था। इसीलिए फ़ाह्यान ने उन्ही स्थानों के भ्रमण को महत्त्व दिया, जो बौद्ध धर्म से सम्बन्धित थे।
अपने यात्रा क्रम में वह मित्रों के साथ सर्वप्रथम 'रानशन' पहुंचा और यहां लगभग 4,000 बौद्ध भिक्षुओं का दर्शन किया। दुर्गम रास्तों से गुजरता हुआ फ़ाह्यान 'खोतान' पहुंचा। यहां उसे 14 बड़े मठों के विषय में जानकारी मिली। यहां के मठों में सबसे बड़ा मठ 'गोमती विहार' के नाम से प्रसिद्ध था, जिसमें क़रीब 3,000 महायान धर्म के समर्थक रहते थे। गोमती विहार के नज़दीक ही एक दूसरा विहार था। यह विहार क़रीब 250 फुट ऊंचा था, जिसमें सोनाचांदी एवं अनेकों धातुओं का प्रयोग किया गया था। मार्ग में अनेक प्रकार का कष्ट सहता हुआ, अगले पड़ाव के रूप फ़ाह्यान 'पुष्कलावती' पहुंचा। जहां उसने हीनयान सम्प्रदाय के लोगों को देखा। ऐसा माना जाता है कि, यहां बोधिसत्व ने अपनी आंखें किसी और को दान की थीं। फ़ाह्यान ने यहां पर सोने एवं रजत से जड़ित स्तूप के होने की बात बताई है। पुष्पकलावती के बाद फ़ाह्यान तक्षशिला पहुंचा।

चीनी स्रोतों का मानना है कि बोधिसत्व ने यहां पर अपने सिर को काट कर किसी और व्यक्ति को दान कर दिया था। इसलिए चीनी लोग तक्षशिला का शाब्दिक अर्थ 'कटा सिर' लगाते हैं। 

यहां पर भी बहुमूल्य धातुओं से निर्मित स्तूप होने की बात का फ़ाह्यान ने वर्णन किया है। तक्षशिला के बाद फ़ाह्यान 'पुरुषपुर' पहुंचा। यहां पर कनिष्क द्वारा निर्मित 400 फीट ऊंचे स्तूप को उसने अन्य स्तूपों में सर्वोत्कृष्ट बतलाया। फ़ाह्यान ने 'नगर देश' में बने एक स्तूप में बुद्ध के कपाल की हड्डी गड़े होने का वर्णन किया है। मथुरा पहुंचकर फ़ाह्यान ने यमुना नदी के किनारे बने 20 मठों के दर्शन किये। फ़ाह्यान ने मध्य देश की यात्रा की सर्वाधिक प्रशंसा की है। चूंकि वह प्रदेश ब्राह्मण धर्म का केन्द्र स्थल था इसलिए इसे 'ब्राह्मण देश' भी कहा गया है। यात्रा के अगले क्रम में फ़ाह्यान कान्यकुब्जसाकेत और फिर श्रावस्ती पहुंचा। श्रावस्ती में भी स्तूप एवं मठ निर्मित मिले और यहां पर भी स्थित 'जेतवन' को फ़ाह्यान ने 'सुवर्ण उपवन' कहा है। इसके बाद फ़ाह्यान कपिलवस्तुकुशीनगर औरवैशाली से होता हुआ पाटलिपुत्र पहुंचा। पाटलिपुत्र को फ़ाह्यान ने तत्कालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ नगर बताया है। यहां पर निर्मित मौर्य सम्राट अशोक के राजप्रसाद को देखकर फ़ाह्यान ने कहा, 'मानो राजप्रसाद देवताओं द्वारा निर्मित हो'। पाटलिपुत्र में ही फ़ाह्यान ने हीनयान एवं महायान से सम्बन्धित दो मठों को देखा तथा अशोक द्वारा निर्मित स्तूप एवं दो लाटों के दर्शन किये। 401 ई. से 410 ई. तक फ़ाह्यान भारत में रहा। इस बीच फ़ाह्यान ने 3वर्ष पाटलिपुत्र में और 2 वर्ष ताम्रलिप्ति (आधुनिक बंगाल का मिदनापुर ज़िला) में बिताए फ़ाह्यान ने अपनी भारत यात्रा के बड़े रोचक विवरण लिखे हैं।

DOWNLOAD-फ़ाहियान की यात्रा विवरण