फ़ाह्यान अथवा फ़ाहियान (अंग्रेज़ी:Faxian) का जन्म चीन के 'वु-वंग' नामक स्थान पर हुआ था। यह बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उसने लगभग 399 ई. में अपने कुछ मित्रों 'हुई-चिंग', 'ताओंचेंग', 'हुई-मिंग', 'हुईवेई' के साथ भारत यात्रा प्रारम्भ की। फ़ाह्यान की भारत यात्रा का उदेश्य बौद्ध हस्तलिपियों एवं बौद्ध स्मृतियों को खोजना था। इसीलिए फ़ाह्यान ने उन्ही स्थानों के भ्रमण को महत्त्व दिया, जो बौद्ध धर्म से सम्बन्धित थे।
अपने यात्रा क्रम में वह मित्रों के साथ सर्वप्रथम 'रानशन' पहुंचा और यहां लगभग 4,000 बौद्ध भिक्षुओं का दर्शन किया। दुर्गम रास्तों से गुजरता हुआ फ़ाह्यान 'खोतान' पहुंचा। यहां उसे 14 बड़े मठों के विषय में जानकारी मिली। यहां के मठों में सबसे बड़ा मठ 'गोमती विहार' के नाम से प्रसिद्ध था, जिसमें क़रीब 3,000 महायान धर्म के समर्थक रहते थे। गोमती विहार के नज़दीक ही एक दूसरा विहार था। यह विहार क़रीब 250 फुट ऊंचा था, जिसमें सोना, चांदी एवं अनेकों धातुओं का प्रयोग किया गया था। मार्ग में अनेक प्रकार का कष्ट सहता हुआ, अगले पड़ाव के रूप फ़ाह्यान 'पुष्कलावती' पहुंचा। जहां उसने हीनयान सम्प्रदाय के लोगों को देखा। ऐसा माना जाता है कि, यहां बोधिसत्व ने अपनी आंखें किसी और को दान की थीं। फ़ाह्यान ने यहां पर सोने एवं रजत से जड़ित स्तूप के होने की बात बताई है। पुष्पकलावती के बाद फ़ाह्यान तक्षशिला पहुंचा।
चीनी स्रोतों का मानना है कि बोधिसत्व ने यहां पर अपने सिर को काट कर किसी और व्यक्ति को दान कर दिया था। इसलिए चीनी लोग तक्षशिला का शाब्दिक अर्थ 'कटा सिर' लगाते हैं।
यहां पर भी बहुमूल्य धातुओं से निर्मित स्तूप होने की बात का फ़ाह्यान ने वर्णन किया है। तक्षशिला के बाद फ़ाह्यान 'पुरुषपुर' पहुंचा। यहां पर कनिष्क द्वारा निर्मित 400 फीट ऊंचे स्तूप को उसने अन्य स्तूपों में सर्वोत्कृष्ट बतलाया। फ़ाह्यान ने 'नगर देश' में बने एक स्तूप में बुद्ध के कपाल की हड्डी गड़े होने का वर्णन किया है। मथुरा पहुंचकर फ़ाह्यान ने यमुना नदी के किनारे बने 20 मठों के दर्शन किये। फ़ाह्यान ने मध्य देश की यात्रा की सर्वाधिक प्रशंसा की है। चूंकि वह प्रदेश ब्राह्मण धर्म का केन्द्र स्थल था इसलिए इसे 'ब्राह्मण देश' भी कहा गया है। यात्रा के अगले क्रम में फ़ाह्यान कान्यकुब्ज, साकेत और फिर श्रावस्ती पहुंचा। श्रावस्ती में भी स्तूप एवं मठ निर्मित मिले और यहां पर भी स्थित 'जेतवन' को फ़ाह्यान ने 'सुवर्ण उपवन' कहा है। इसके बाद फ़ाह्यान कपिलवस्तु, कुशीनगर औरवैशाली से होता हुआ पाटलिपुत्र पहुंचा। पाटलिपुत्र को फ़ाह्यान ने तत्कालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ नगर बताया है। यहां पर निर्मित मौर्य सम्राट अशोक के राजप्रसाद को देखकर फ़ाह्यान ने कहा, 'मानो राजप्रसाद देवताओं द्वारा निर्मित हो'। पाटलिपुत्र में ही फ़ाह्यान ने हीनयान एवं महायान से सम्बन्धित दो मठों को देखा तथा अशोक द्वारा निर्मित स्तूप एवं दो लाटों के दर्शन किये। 401 ई. से 410 ई. तक फ़ाह्यान भारत में रहा। इस बीच फ़ाह्यान ने 3वर्ष पाटलिपुत्र में और 2 वर्ष ताम्रलिप्ति (आधुनिक बंगाल का मिदनापुर ज़िला) में बिताए फ़ाह्यान ने अपनी भारत यात्रा के बड़े रोचक विवरण लिखे हैं।
DOWNLOAD-फ़ाहियान की यात्रा विवरण
अपने यात्रा क्रम में वह मित्रों के साथ सर्वप्रथम 'रानशन' पहुंचा और यहां लगभग 4,000 बौद्ध भिक्षुओं का दर्शन किया। दुर्गम रास्तों से गुजरता हुआ फ़ाह्यान 'खोतान' पहुंचा। यहां उसे 14 बड़े मठों के विषय में जानकारी मिली। यहां के मठों में सबसे बड़ा मठ 'गोमती विहार' के नाम से प्रसिद्ध था, जिसमें क़रीब 3,000 महायान धर्म के समर्थक रहते थे। गोमती विहार के नज़दीक ही एक दूसरा विहार था। यह विहार क़रीब 250 फुट ऊंचा था, जिसमें सोना, चांदी एवं अनेकों धातुओं का प्रयोग किया गया था। मार्ग में अनेक प्रकार का कष्ट सहता हुआ, अगले पड़ाव के रूप फ़ाह्यान 'पुष्कलावती' पहुंचा। जहां उसने हीनयान सम्प्रदाय के लोगों को देखा। ऐसा माना जाता है कि, यहां बोधिसत्व ने अपनी आंखें किसी और को दान की थीं। फ़ाह्यान ने यहां पर सोने एवं रजत से जड़ित स्तूप के होने की बात बताई है। पुष्पकलावती के बाद फ़ाह्यान तक्षशिला पहुंचा।
चीनी स्रोतों का मानना है कि बोधिसत्व ने यहां पर अपने सिर को काट कर किसी और व्यक्ति को दान कर दिया था। इसलिए चीनी लोग तक्षशिला का शाब्दिक अर्थ 'कटा सिर' लगाते हैं।
यहां पर भी बहुमूल्य धातुओं से निर्मित स्तूप होने की बात का फ़ाह्यान ने वर्णन किया है। तक्षशिला के बाद फ़ाह्यान 'पुरुषपुर' पहुंचा। यहां पर कनिष्क द्वारा निर्मित 400 फीट ऊंचे स्तूप को उसने अन्य स्तूपों में सर्वोत्कृष्ट बतलाया। फ़ाह्यान ने 'नगर देश' में बने एक स्तूप में बुद्ध के कपाल की हड्डी गड़े होने का वर्णन किया है। मथुरा पहुंचकर फ़ाह्यान ने यमुना नदी के किनारे बने 20 मठों के दर्शन किये। फ़ाह्यान ने मध्य देश की यात्रा की सर्वाधिक प्रशंसा की है। चूंकि वह प्रदेश ब्राह्मण धर्म का केन्द्र स्थल था इसलिए इसे 'ब्राह्मण देश' भी कहा गया है। यात्रा के अगले क्रम में फ़ाह्यान कान्यकुब्ज, साकेत और फिर श्रावस्ती पहुंचा। श्रावस्ती में भी स्तूप एवं मठ निर्मित मिले और यहां पर भी स्थित 'जेतवन' को फ़ाह्यान ने 'सुवर्ण उपवन' कहा है। इसके बाद फ़ाह्यान कपिलवस्तु, कुशीनगर औरवैशाली से होता हुआ पाटलिपुत्र पहुंचा। पाटलिपुत्र को फ़ाह्यान ने तत्कालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ नगर बताया है। यहां पर निर्मित मौर्य सम्राट अशोक के राजप्रसाद को देखकर फ़ाह्यान ने कहा, 'मानो राजप्रसाद देवताओं द्वारा निर्मित हो'। पाटलिपुत्र में ही फ़ाह्यान ने हीनयान एवं महायान से सम्बन्धित दो मठों को देखा तथा अशोक द्वारा निर्मित स्तूप एवं दो लाटों के दर्शन किये। 401 ई. से 410 ई. तक फ़ाह्यान भारत में रहा। इस बीच फ़ाह्यान ने 3वर्ष पाटलिपुत्र में और 2 वर्ष ताम्रलिप्ति (आधुनिक बंगाल का मिदनापुर ज़िला) में बिताए फ़ाह्यान ने अपनी भारत यात्रा के बड़े रोचक विवरण लिखे हैं।
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