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Tuesday, 30 August 2016

28. काकी-सियारामशरण गुप्त

यह कहानी एक कालजयी रचना है जो बल मन को उदगर करता है----

सियारामशरण गुप्त का सेठ रामचरण कनकने के परिवार में श्री मैथिलीशरण गुप्त के अनुज रुप में चिरगाँवझांसी में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने घर में ही गुजरातीअंग्रेजी और उर्दू भाषा सीखी। सन् १९२९ ई. में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और कस्तूरबा गाँधी के सम्पर्क में आये। कुछ समय वर्धा आश्रम में भी रहे। सन् १९४० में चिरगांव में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का स्वागत किया। वे सन्त विनोबा भावे के सम्पर्क में भी आये। उनकी पत्नी तथा पुत्रों का निधन असमय ही हो गया था अतः वे दु:ख वेदना और करुणा के कवि बन गये। १९१४ में उन्होंने अपनी पहली रचना मौर्य विजय लिखी।


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