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Sunday, 21 August 2016

9. पाँच पापी-SMP

पाँच पापी-SMP

साधूराम होतचन्दानी के बंगले के ड्राइंगरूम के तमाम खिड़कियाँ दरवाजे बन्द थे।

साधूराम हतचन्दानी एक व्यापारी था जिसने नेपाल में रहकर काफी दौलत कमाई थी। इस दौलत का ज्यादातर हिस्सा उसने बेईमानी और धोखाधड़ी से कमाया था। पच्चास के उम्र के आसपास का होतचन्दानी अब अपना सारा कारोबार बेचकर और अचरा, जो कि एक बेहद खूबसूरत थाई महिला थी, के साथ वापस भारत जाना चाहता था। लेकिन उसकी ये इच्छा केवल इच्छा ही रह गयी जब किसी ने उसकी छाती में गोली दाग़ दी।
क़त्ल का शक पांच लोगों के ऊपर था। एक उसका बेटा मानक होतचन्दानी, जिसे साधूराम की कभी नहीं बनी, उसका दमान योगेश कृपलानी,जो कि बुरी तरह से कर्जे में डूबा हुआ था, उसकी जवान माशूका अचरा योसविचित( जो शायद पैसे के लिए ही उसके साथ थी), कैप्टेन विलययम मूंग विन( अचरा का ख़ास दोस्त जो उसका प्रेमी भी हो सकता था) और आखिरी में साधूराम का वकील मच्छेन्द्रनाथ राणा। 
 तो कौन था इनमे से कातिल और आखिर क्यों हुई थी साधूराम की हत्या?
पुकीस के इलावा विवेक जालान भी कातिल का पता लगाना चाहता था। क्योंकि पुलिस की निगाह में वो भी कातिल हो सकता था। और केस सॉल्व हुए बिना वो नेपाल से बाहर नहीं जा सकता था जो कि उसके लिए बहुत जरूरी था।
क्या वो इस गुत्थी को सुलझा पाया।
इनके इलावा एक और संदिग्ध आदमी था और वो था दामोदर खैतान, जो कि साधूराम से पचास लाख के हीरे खरीदने का इच्छुछुक था। लेकिन साधुराम की मौत के बाद जब जवाहरात भी चोरी हो गए तो वो अब उस चोर की तलाश में था जिसने उन्हें चुराया था। उसे लग रहा था कि वो जवाहारात उन पाँचों में से ही किसी के पास थे। तो क्या उसे वो जवाहरात मिले? आखिर उन जवाहरातों में ऐसा क्या था जो उन्हें खरीदने के लिए दामोदर इतना बेकरार  था?
सवाल कई हैं और जवाब उपन्यास के अंदर ही आपको मिलेंगे। 

सुरेंद्र मोहन पाठक जी के इस उपन्यास के विषय में अपनी राय दू तो यह उपन्यास मुझे बेहद पसंद आया। उपन्यास की शैली हु डन इट की है। अगर आप इस तरह ले उपन्यासों के शौक़ीन हैं तो आपको पता होगा कि इस तरह के  उपन्यासों में एक क़त्ल होता है और उसका संदेह एक से ज्यादा लोगों पर होता है। फिर उपन्यास का नायक उन लोगों  में से असली अपराधी को ढूँढता है। यह उपन्यास भी ऐसा ही है। इसमें हीरो के ऊपर भी पुलिस को कत्ल का शक होता है और अपने आप को बेगुनाह साबित करने उसे कातिल को ढूँढना होता है
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